Saturday 31 January 2015

//// प्रधानमंत्री के छाते में दिल्ली के कुकुरमुत्तों को ढकने का प्रयास ....////

मोदी का भाषण सुना ....
भाषण की शैली ठीक ठाक थी ....
दिल्ली के मुद्दे लगभग नदारद थे ....
कोई नई बात ऐसी नहीं थी जो पहले ना कही गयी हो ....
एक बार फिर लगा कि रैली पर खर्च बहुत किया ही गया होगा ....
हेलीकाप्टर से एंट्री पर भक्तों ने ताली बजाई पर वहां उपस्थित थोड़ी सी जनता खामोश थी ....
पूरा भाषण सारहीन मुद्दारहित था .... दिल्ली में १ वर्ष तक चुनाव ना होने के स्वयं गुनहगार होते हुए भी दोषारोपण दूसरों पर करना शर्मनाक लगा .... और प्रधानमंत्री होते हुए इस आशय की बातें करना कि केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार दोनों जगह भाजपा होने के क्या मायने होंगे .... तथा मुफ्त ऑटोरिक्शा वाला पुराना बचकाना चुटकुला .... तथा दूसरों के लिए धोखा, झूठा, या पीठ में छुरा भोंकने जैसे शब्दों का प्रयोग आदि स्तरहीन अनैतिक और घटिया लगा ....
पर हाँ कुछ बातें अच्छी भी लगीं - उन्होंने कहा कि झूठ एक बार चलता है बार-बार नहीं - शायद ये उनकी स्वीकारोक्ति थी .... और इस बार उन्होंने केजरीवाल को सीधे सीधे गाली देने की हिमाकत नहीं करी !!!!    
और कुल मिलाकर सबसे महत्वपूर्ण बात ....
मोदी जी का भाषण प्रधानमंत्री के छाते में दिल्ली के कुकुरमुत्तों को ढकने का प्रयास दिखा !!!! हास्यास्पद प्रयास !!!! जय हिन्द !!!!
\\ब्रह्म प्रकाश दुआ\\

//// "विकास पुत्तर" के बाद अब "विश्वास पुत्तर" की झांकी ?? ....////


आप पार्टी ने अभी-अभी शानदार मैनिफेस्टो जारी किया है ....
और तब से ही भाजपाई - चीं चैं चौं  करने लगे हैं .... फण्ड कहाँ से लाएंगे - बिना केंद्र सरकार की मदद के कैसे कर पाएंगे - कहने से क्या होता है - कहने और करने में फर्क है - बातें "विश्वास" योग्य नहीं हैं .... आदि !!!!

मित्रों इससे एक बात तो स्पष्तः स्थापित हो गई कि केजरीवाल ने जो कहा सौ टंच सही कहा - कम से कम उनकी कथनी तो १००% सही पाई गई है .... और इस विषयक तो भाजपाइयों ने भी अब हाथ टेक दिए हैं - अतः भक्तों की हालत का अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है - बेचारे !!!!

अब आ जाए दूसरे पहलू पर - कि उन्होंने जो कहा उस पर "विश्वास" किया जाए या नहीं ??
मेरी विवेचना ....

क्यों भाई भक्तों ! सारा "विश्वास" तुम्ही पर क्यों किया जाए - क्या तुम "विश्वास" के भी चाचा काका मामा हो - सुरखाब के पर लगे हैं तुममें - क्या किया ८ महीने में जो तुम पर और "विश्वास" करें - और क्या नहीं हुआ था उन ४९ दिनों में जो हम केजरीवाल पर विश्वास ना करें ????

भक्तों कान खोल कर सुन लो .... पहले "विकास"-"विकास" बहुत चिल्ला लिए .....
अब "विश्वास"-"विश्वास"चिल्ला रहे हो .....
जबकि तुम ""विश्वास पुत्तर" का गला तो पहले ही घोंट चुके हो और "विकास पुत्तर" का गर्भपात नौवां लगते ही हो गया है ....
इसलिए अब "विकास" और "विश्वास" की ओछी राजनीति से बाज़ आओ - इन दोनों की झांकी निकल चुकी है और चुक्ता भी हो चुकी है .... करना हो तो मुद्दों की बात करो .... थोड़ी देर अपने दिमाग से निकालो कि केजरीवाल मफलर क्यों पहनता है - खांसता क्यों है - उसकी खांसी छोडो अपने गले की परवाह भी करो !!!! जय हिन्द !!!!
\\ब्रह्म प्रकाश दुआ\\

//// और केजरीवाल की दिल्ली के मुद्दों पर सारगर्भित बातें .... ////


अभी हाल अरविन्द केजरीवाल को 'आप' पार्टी का मैनिफेस्टो जारी करते सुना ....
लगभग १ घंटे में उन्होंने धाराप्रवाह दिल्ली से संबंधित सारगर्भित बिन्दुओं का ज़िक्र किया .... दिल्ली से संबंधित मुद्दों की ही बात कही .... ठोस बातें कहीं .... उत्साहवर्धक बातें कहीं .... विश्वास योग्य बातें कहीं !!!!

उधर पिछले दो दिनों से मोदी सरकार के मंत्रीगण अपने सारे काम और प्राथमिक दायित्वों को छोड़ बेशर्मी के साथ इतने ही टाइम की बकवास में 'आप' पार्टी से बांसी पुराने व्यक्ति आधारित ५-५ यानी १० सवाल पूछते पाए गए थे - जिनके उत्तर भक्त तक के गले उतारे जा चुके थे !!!!
मुझे साफ़ हुआ कि उत्तर तो दूर की बात उपयुक्त प्रश्न पूछना भी इनके बस की बात नहीं !!!!

और मुझे ज्ञात हुआ है कि दिल्ली में आज एक और ऐतिहासिक दिन है - शायद आज इतिहास में सबसे ज्यादा 'मंत्री-सांसद-विधायक' आदि एक साथ दिल्ली की सड़कों पर खाक छानते पाए जाएंगे - इतने ज्यादा कि आप कहीं भी पत्थर या फूल फेंकेंगे संभवतः वो नेता पर ही चेंटेंगे !!!!

और संयोग से आज दोपहर में मोदी जी की एक और रैली होने वाली है और मुझे पूरा भरोसा है कि उसमे तमाम 'हाइप' तो होगी - पर यक़ीनन दिल्ली के मुद्दों के बारे कोई ठोस बात नहीं होगी - होगी तो कुछ फेकम फांक और शायद कुछ नए वादे - और केजरीवाल की शान में एक आध गाली और ....

मुझे लगता है इस बार दिल्लीवासियों की दुविधा समाप्त हो चुकी है ....
अब तय है .... "५ साल केजरीवाल"  .... !!!! जय हिन्द !!!!
\\ब्रह्म प्रकाश दुआ\\

//// हर हाल में - "५ साल केजरीवाल" - पूछते रहो "५ सवाल केजरीवाल" .... ////

आप का नारा है ................. ५  साल  केजरीवाल ....
और भाजपा बोल रही है ...... ५ सवाल केजरीवाल ....
मुझे लगता है कि जब तक किरण बेदी के हलक से आवाज़ निकलेगी तब तक पूरी भाजपा "५ सवाल केजरीवाल" कहते कहते खुद एक सवाल बन जाएगी और केजरीवाल ५ साल के लिए काबिज़ हो जाएंगे !!!!
और खुदा ना खास्ता किरण बेदी का गला ठीक हो गया और उन्होंने मुहं खोल दिया तो .... तो भाजपा के सामने भी रोज ५० सवाल स्वतः ही खड़े हो जाएंगे .... और केजरीवाल ५ साल के लिए फिर भी काबिज़ हो जाएंगे !!!!
यानि अब तो भले ही चुप रहो या चिल्लाते रहो - "५ सवाल केजरीवाल" ....
पर अब तो हर हाल में तय है कि - "५ साल केजरीवाल" .... हा ! हा !! हा !!!
जय हिन्द !!!!
\\ब्रह्म प्रकाश दुआ\\

Friday 30 January 2015

//// बोलती बंद या गाली .... फायदा नुक़सान किसका ?? ....////

भक्त लोग और भाजपा नेता सोच रहे होंगे कि भगवान का लाख-लाख शुक्र है - किरण बेदी की बोलती बंद हो गयी है ....
और केजरीवाल सोच रहे होंगे कि - धत्त तेरे की !! मैडम के गले को भी अभी ख़राब होना था ....
और मैं सोच रहा हूँ कि क्या फरक पड़ता है ? किरण बेदी बोले या ना बोले - उनको सीरियसली सुनता ही कौन था ??
और यदि केजरीवाल को किरण बेदी के ना बोलने से कुछ नुक़सान होना संभावित भी हो - तो भाजपा में बोलबच्चनों की कमी तो है नहीं .... कल ही एक रैली होनी है - पिछली बार नक्सली कहा गया था तो केजरीवाल को फायदा हो गया था - और मुझे पूरी उम्मीद है कि इस बार भी कोई न कोई गाली जरूर दी जाएगी - और किरण बेदी के गले की भरपाई हो जाएगी .... जय हिन्द !!!!
\\ब्रह्म प्रकाश दुआ\\

//// क्या वो महान कार्टूनिस्ट भी अराजक थे ?? .... ////

दिवंगत 'आम आदमी' के जनक, प्रवक्ता और संरक्षक कार्टूनिस्ट श्री आर.के. लक्ष्मण का २६ जनवरी १९८३ गणतंत्र दिवस परेड की झांकियों पर एक कार्टून अभी देखने में आया ....
और मुझे फिर याद आया - मेरे जीवंत 'आम आदमी' का वो वक्तव्य जो उन्होंने दिल्ली में आम आदमी के हितों की लड़ाई लड़ते धरने के दौरान २६ जनवरी २०१४ के गणतंत्र दिवस परेड के परिप्रेक्ष्य में दिया था ....
कार्टून नीचे प्रस्तुत है ....
और प्रस्तुत है मूर्खों और भक्तों के लिए प्रश्न कि - क्या आर.के. लक्ष्मण भी अराजक थे ??
'आम आदमी' ज़िंदाबाद !!!!

//// कुछ 'चालाक शाणे' .... तो कुछ 'दयनीय बेवक़ूफ़' - ठस बुद्धि .... ////


आज समाचार आया है कि दिल्ली चुनाव के परिप्रेक्ष्य में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा - // भाजपा द्वारा किरण बेदी को दिल्ली के मुख्यमंत्री की प्रत्याशी के रूप में एक रणनीति के तहत उतारा गया है - दिल्ली चुनाव में मोदी ही पार्टी का चेहरा होंगे .... //

मेरी विवेचना ....

ओफ़ ओह !! और मैडम समझ रहीं थीं कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के लिए उतारा गया है ?? बेचारी !!!!
और दिल्ली के कुछ भक्त और मूर्ख अब तक भी ये समझ रहे हैं कि भाजपा ने मैडम को दिल्ली की भलाई के लिए चुनाव में उतारा है ?? बेचारे !!!!

मुझे लगता है कि कुछ बेवक़ूफ़ ऐसे होते हैं जो बिना जाने कि वो किस रणनीति का शिकार हो रहे हैं वो किसी भी रण में कूद जाते हैं .... और कुछ शाणे ऐसे होते हैं जो रण में बेवकूफों को आगे कर अपने को बचा जाते हैं तथा जो अपनी बेवकूफी जल्द भांप कर अपनी रणनीति और मोहरे बदलते रहते हैं !!!!

यानि मेरी बात का सार आप प्रत्यक्षतः यूं भी समझ सकते हैं ....
कुछ 'चालाक शाणे' ऐसे होते हैं जिन्हे स्वयं के द्वारा की गई बेवकूफी की पुष्टि होते ही वो रणनीति बदल लेते हैं .... जैसे कि विकास के पापा और चाचा ....
और कुछ 'दयनीय बेवक़ूफ़' ऐसे होते हैं जिन्हे ये तक समझ नहीं होती कि वो क्या बेवकूफी कर चुके हैं और कर रहे है और करते ही जा रहे हैं .... जैसे कि आयरन लेडी ठस बुद्धि ....!!!!
\\ब्रह्म प्रकाश दुआ\\

Thursday 29 January 2015

//// 'अमरीकन दोस्त' सही या 'देसी लंगोटिये' ?? .... ////

संविधान की प्रस्तावना में से "सेक्युलर" और "सोशलिस्ट" शब्दों को निकालने पर विवाद हो चला है - मूल रूप से ये दोनों शब्द संविधान में नहीं थे - और १९७६ में ये दोनों शब्द संविधान की प्रस्तावना में समाविष्ट किए गए थे ....
विवाद में कूदते हुए और अग्नि हवा देते हुए अब शिवसेना ने बयान दे दिया है कि - संविधान में से इन दोनों शब्दों को विलोपित कर देना चाहिए और इस देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए क्योंकि ये देश ना तो सेक्युलर था ना है और ना ही हो सकता है - आदि !!!!
प्रतिक्रिया में मेरा महत्वपूर्ण प्रश्न ....
संभवतः हमेशा 'हाइप-हाइप' करने वाले पर मुद्दों और मौकों पर चुप हो जाने वाले नौलखटकिया परिधान मंत्री मौंदी क्या ये बताएँगे कि उनके 'अमरीकन दोस्त' बराक सही बोल गए या उनके 'देसी लंगोटिये दोस्त' शिवसैनिक सही बोल रहे हैं ????
ध्यान रहे - जम्मू कश्मीर में सरकार बनानी है - और महाराष्ट्र में शिवसेना रोज़ आँख दिखा रही है - और उधर संघी बजरंगी विहिप वाले बाहें ताने खड़े है - और जनाब दिल्ली में चुनाव सर पर हैं - और केजरीवाल उफान पर हैं - और फेंकू आयरन लेडी को जंग लग गया है - इसलिए जवाब ज़रा सोच समझ कर ही दीजियेगा - या फिर ना भी दीजियेगा तो कोई क्या कर लेगा .... है ना !!!!
तो ठीक है देखते हैं क्या दिल्ली चुनाव बाद भी जवाब देने की हिम्मत जुटा पाएंगे ????

//// क्रांतिकारी का झूठ - बनाम - झूठों का सच .... फैक्ट्री - बनाम - उद्योग ....////


मित्रों आप को ज्ञात ही होगा कि कुछ दिनों पहले दिल्ली में एक 'झूठ की फैक्ट्री' चलने का पर्दाफाश हुआ था .... फैक्ट्री मालिक एक क्रांतिकारी था .... कुछ दिन पहले ही उसने कहा था कि "भाजपा और कांग्रेस दोनों चुनाव पूर्व पैसा दारु आदि बांटते हैं" !!!!
बस फिर क्या था सत्यवादी हरिश्चंद्र की सभी जायज नाजायज औलादें एकजुट हो गयीं .... और इन्होने भी एक वृहद 'सच बोलने का उद्योग' खोल दिया .... और क्रांतिकारी का मुंह मफलर बांध बंद करने का प्रयास किया !!!!
तब से - और अब से - और जब से - और ना जाने कब से - ये सच का उद्योग दिल्ली में फल फूल रहा है .... इसके लिए बाकायदा एक 'सच मित्रमंडल' का गठन हुआ ..... और इस धरती पर सच बोलने का शुभारम्भ दिल्ली की पावन धरती से शुरू हुआ .....शुरआत में ही दो टूक बोल दिया गया - "सबका साथ सबका विकास" - "अच्छे दिन" - "कालाधन" - आदि .... और अब सच बोलने की होड़ लगी हुई है .... जहां देखो सच बिखरा हुआ है .... कड़ाके की सर्दी में भी केवल सच ही कुछ गर्माहट छोड़ जाता है ..... सच की बहार है .... सच की बौछारें हो रही  हैं .... पूरा वातावरण सच से सराबोर है .... और अब तो 'सच मंत्रिमंडल' ने 'सच मित्रमंडल' का कार्य अपने हाथों में ले लिया है .... और पूरा 'मंत्रिमंडल' ही सच बोलने के काम में लग गया है ..... पूरी लगन और नंगाईयत के साथ - सारा काम धाम छोड़ के .... और सुना है कि 'सच मंत्रिमंडल' के प्रधान ने भी अब दिल्ली में ४-४ बार सार्वजानिक रूप से सच बोलने का बीड़ा उठा लिया है .... और पूरा 'मंत्रिमंडल' अपने दायित्वों की बलि चढ़ा देश को भाड़ में झोंकने तक के लिए तत्पर बस सच बोलने के चक्कर में दिल्ली की गलियों में निकल पड़ा है .... आयरन लेडी भी सायरन बजा बैठी आवाज़ में सच का उद्घोष कर रहीं हैं !!!!

पर मित्रो सच के ऐसे अभूतपूर्व आलम के बावजूद मुझे किसी भी प्रकार के आनंद की अनुभूति छू तक नहीं गई .... मैं उद्वेलित हो उठा .... मंथन किया कि आखिर ऐसा क्यों ? तब जाकर मुझे सामान्य सा एक और सच समझ आया कि .... // सच कड़वा होता है // .... छिः थूः - धिक्कार है ऐसे सच पर !!!!

अब मुझे तो बस उस क्रांतिकारी का सदाबहार झूठ ही मीठा लगता है .... बहुत मीठा - सारगर्भित और लाभदायक - और "सत्य" भी .... और हाँ चौंकिएगा मत .... मुझे तो वही 'झूठ' अब 'सच' भी लगता है !!!!
फैसला आपको करना है .... झूठों का 'कड़वा सच' आत्मसात करना है या - सच में 'मीठा झूठ' !!!!
\\ब्रह्म प्रकाश दुआ\\

Wednesday 28 January 2015

//// पोस्टर विवाद ....आयरन लेडी की ऐसी हालत ?? .... ////

दिल्ली में एक पोस्टर को लेकर विवाद हो रहा है  ....
केजरीवाल की फोटो के नीचे लिखा है "ईमानदार" - और किरण बेदी की फोटो के नीचे लिखा है "अवसरवादी" !!!!
किरण बेदी और भाजपा द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है - एक तो इस कारण कि किरण बेदी को अवसरवादी क्यों कहा गया और दूसरे उनकी फोटो का उपयोग उनकी बिना इज़ाज़त क्यों किया गया ??
मेरी विवेचना ....
भाई आपने अरविन्द केजरीवाल की फोटो के नीचे लिखा "ईमानदार" यहाँ तक तो सही है क्योंकि केजरीवाल के पास सिवाय "ईमानदारी" के अलावा उससे बढ़कर और तो कोई चीज़ है ही नहीं ....
पर किरण बेदी के नाम के नीचे केवल "अवसरवादी" लिखना तो गलत है - भले ही पोस्टर में जगह छोटी पड़ती हो पर बात पूरी लिखना थी - फेंकू - गुस्सैल - पुलसिया - दोगली - बड़बोली - चालाक - भगोड़ी - आदि ....
और जहाँ तक फोटो का सवाल है तो मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि जब कांच माफिक ये बात स्पष्ट है कि ईमानदार कौन है और अवसरवादी कौन तो फोटो की आवश्यकता ही क्यों हैं ?
पर मैं यह भी नहीं समझ पा रहा हूँ की किरण बेदी और भाजपा फोटो को लेकर इतनी छुई मुई सी क्यों होए जा रही है कि फोटो के पहले हमारी स्वीकृति क्यों नहीं ली - तो मेरा कहना है कि चुनावी पोस्टरों में हम अनेकों जीवित और परलोकवासियों की फोटो को इस्तेमाल होते देखते आ रहे है - और तो और लोगों ने तो देवी देवताओं और शहीदों तक के फोटो धड़ल्ले से इस्तेमाल किये हैं - तो अब आज ऐसा क्या हो गया ?
और मैं तो ये भी नहीं समझ पा रहा हूँ कि ऐश्वर्या दीपिका प्रियंका हेमा ममता जयललिता मेरीकॉम सानिया आदि की कितनी फोटो यहाँ वहां छपती रहती हैं - तो क्या हर बार स्वीकृति ली - दी जाती होगी - तो फिर क्या किरण बेदी इन सबसे भी ज्यादा छुई मुई है ???? आयरन लेडी की ऐसी हालत ????

//// मुझे भी नहीं चाहिए पद्म अवार्ड ....////

बाबा रामदेव ने मना कर दिया ....
श्री श्री रविशंकर ने भी मना कर दिया ....
कल मैंने भी मना कर दिया ....
मैंने भी दुखी मन से विनम्रता प्रदर्शित करते हुए दार्शनिक अंदाज़ में कह दिया कि - "मैं पद्म अवार्ड के लायक नहीं हूँ - यह पुरूस्कार किसी अन्य योग्य महानुभाव को दे दिया जाए" ....
पर ये क्या - जब से मैंने पुरूस्कार लेने के लिए मना किया है ये टुच्ची सरकार कह रही है कि - ब्रह्म प्रकाश तुम्हारा नाम तो लिस्ट में था ही नहीं ....
आप ही बताएं क्या पद्म पुरूस्कार में भी ऐसी ओछी राजनीति उचित है ??
मैं स्वयं की महानता प्रदर्शित करने के लिए कुछ भी बोलूं - पर क्या इसका मतलब ये निकाल ही लिया जाएगा कि मैं पद्म अवार्ड तक के भी लायक नहीं हूँ ??
और सबसे बड़े सवाल - क्या रामदेव बाबा पद्म अवार्ड के लायक नहीं हैं - या हैं ??
या रामदेव बाबा की जगह या मेरी जगह फुर्सत हुआ अवार्ड क्या किरण बेदी को तत्काल और दिल्ली चुनाव पूर्व ही नहीं दिया जाना चाहिए ????
मित्रों सोचियेगा ज़रूर .... धन्यवाद !!!!
\\ब्रह्म प्रकाश दुआ\\

//// हाय बराक !! ये तुम क्या कह गए ? क्यों कह गए ?? कब कह गए ???....////

ओबामा कहिन > " भारत धर्म के नाम पर नहीं बंटा तो  बहुत  विकास करेगा " ....
ब्रह्म कहिन      > " भारत धर्म के नाम पर नहीं बंटा तो    ही    विकास करेगा " ....
और दोस्त कहिन >>
ये क्या तरीका है दोस्ती निभाने का .... जाते जाते ...????
OK  BARAK  !  GOOD  BYE  !!  SEE  YOU  OBAMA  !!!
{ हिंदी तर्जुमा - ओके बराक ! नमस्ते !! देख लूँगा तुझे ओबामा !!! }
....
साथ ही ब्रह्म सोचिन .... न जाने दोस्त क्या सोचिन ? एयरपोर्ट लेने तो गए थे छोड़ने नहीं गए ??.... क्यों ????
\\ब्रह्म प्रकाश दुआ\\

Tuesday 27 January 2015

//// मूर्खाधिपतियों क्या कोई हम्माल बनने के लिए सांसद का चुनाव लड़ता है ?? ////


आजकल डिबेट्स में मैं भाजपा प्रवक्ताओं द्वारा इस आशय की बात करते देख रहा हूँ कि .....अरविन्द केजरीवाल सत्ता के लोलुप हैं - वे स्वार्थी हैं - वो लालची हैं - उन्हें एन-केन-प्रकारेन बस सत्ता में आना है - वो तो बस अब जैसे तैसे मुख्यमंत्री बनने की कोशिश कर रहे हैं - वो तो बस छटपटा रहे हैं - वो वाराणसी प्रधानमंत्री बनने का सपना लेकर पहुंच गए थे - वो भी मुख्यमंत्री का पद छोड़कर .... आदि इत्यादि !!
चलो प्रवक्ता तो ठीक हैं - क्योंकि उन्हें अपनी पार्टी हित की बात कहने का अधिकार है ....
पर जब बहस के टीवी एंकर्स और बिके हुए स्वघोषित निष्पक्ष पत्रकार या विशेषज्ञ भी ऐसी ही बात बिना नैतिकता और तर्क के तराज़ू पर तोलते हुए करते हैं और इसमें के बकवास प्रश्न ज्यादातर 'आप' पार्टी के प्रवक्ताओं से ही पूछते हैं तो ज़रा अजीब लगता है गुस्सा आता है और उनकी अकल पर तरस भी !!!!

इसलिए इस विषयक एक छोटी सी प्रतिक्रिया के रूप में मैं उपरोक्त वर्णित मूर्खाधिपतियों से आह्वाहन करता हूँ कि >>>>
> भाजपा या कांग्रेस के एक विधायक का नाम बताया जाए जो विधायक का चुनाव विधायक बनने के लिए ना लड़ा हो - बल्कि वो तो इंजीनियर बनने के लिए लड़ा हो और किस्मत या बदकिस्मत से विधायक बन गया हो ?
> भाजपा या कांग्रेस के एक सांसद का नाम बताया जाए जो सांसद का चुनाव दरअसल एक हम्माल बनने के लिए लड़ा हो - पर जनता ने उसे जबरन वोट दिए हों और उसे जबरन सांसद की शपथ दिला बेचारे का करियर चौपट कर दिया हो - और फिर टुच्चों और लुच्चों द्वारा मिल कर उसे जबरन मंत्री बना डाला हो ?
> बताया जाए कि मोदी जी वडोदरा और वाराणसी सीट से सांसद का चुनाव क्या मत्स्य विभाग में अर्दली या बाबू बनने के लिए लड़े थे - और फिर सारे भाजपाइयों ने चुनाव बाद उन्हें जसोदाबेन की कसम दिला प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा सारे दायित्वों से लाद दिया था ??
> बताया जाए कि क्या किरण बेदी दिल्ली की मुख्यमंत्री बनने के लिए दिल्ली की सड़कों की खाक छान रहीं हैं या मात्र दिल्ली दर्शन करने के लिए निकली हैं अपनी किटी सहेलियों से मिलने जुलने ? या फिर कहीं उनके दिमाग में ये तो नहीं कि अगर वो जीत भी जाती हैं तो वो अड़ जाएंगी कि मुझे तो पुलिस कमिश्नर बना दो जो मैं पहले ना बन सकी थी - मुझे नहीं बनना मुख्यवुख्यमंत्री !!!!

अरे मूर्खाधिपतियों !! इतनी मूर्खता भी क्यों पटकते हो कि तुम्हारे सामने भक्त भी शर्मिंदा होने के लिए मजबूर हो जाएँ ?? ज़रा अपनी क़ाबलियत को खुरचो - महसूस करो कि प्रायः सभी सामान्य लोग आशावादी महत्वाकांक्षी या अवसरवादी होते ही हैं - और इसमें गलत कुछ भी नहीं - पर देखने परखने योग्य बात केवल इतनी सी होती है कि कौन अपने लक्ष्य तक पहुँचने हेतु नैतिक तरीके अपनाता है और कौन अनैतिक - किसकी नीयत साफ़ है किसकी नीयत ख़राब - किसका तौर तरीका सही है किसका गलत - कौन पैसा मेहनत से कमाता है कौन चोरी से - किसको शोहरत सद्कर्मों से मिलती है किसको दुष्कर्मों से -  यानि कार्यप्रणाली भी महत्त्वपूर्ण होती है !!!! है ना !!!!
जागो इंडिया जागो !!!! मूर्खों को जवाब दो और परास्त करो !!!! जय हिन्द !!!!

//// कोट पर नाम अंकन अंग्रेजी में क्यों ? ७८६ बार क्यों ? .... चड्डी पर क्या ? .... ////


सुना है कुछ भक्तों ने ऐतराज़ जताया है कि कोट पर नाम अंग्रेजी में क्यों अंकित किया गया - हिंदी में क्यों नहीं ? - UN में भाषण तो हिंदी में दिया था ....
और सुना है इस बीच कुछ मुस्लिम छोरों ने अफवाह उड़ा दी है कि नाम पूरे ७८६ बार अंकित था और सूत्र बता रहे हैं कि इस पर भी बेफिजूल बवाल कटने लगा .... शायद आपत्ति ली जा रही थी कि नाम १००८ बार अंकित क्यों नहीं हुआ ७८६ बार किस गुणा-भाग से ??

इस पर सूत्र बता रहे हैं कि अब सफाई दी गयी है कि ..... सर्व प्रथम तो नाम का अंकन १००१ बार था ७८६ बार नहीं .... और इसके अलावा शायद ये भी बताया गया है कि ..... चड्डी पर अंकन हिंदी में ही था ..... चड्डी के पूरे पट्टे घेरे पर लिखा था ....
"- नरेंद्र दामोदरदास मोदी - प्रधानमंत्री - भारत सरकार - नई दिल्ली - भारत -"

अतः मित्रों मेरा निवेदन है कि बिला वजह फालतू की बातों पर विरोध करना उचित नहीं है ....
कोई क्या पहनता है ये एक सर्वथा निजी विषय है - और निजता का सम्मान होना चाहिए !!!!
मैंने कई बार देखा है मसलन जैसे कि ....
छोटे बच्चों को गले में नाम का पट्टा डाला जाता है ....
कई बार तो पालतू कुत्तों को भी नाम का पट्टा डाला जाता है क्योंकि अब जानवर तो अपना नाम बोल नहीं सकता तो कोई पढ़ कर ही जान ले कि ये कौन सा कुत्ता है ....
और मैंने आपने ये भी देखा ही होगा कि सामान्यतः पागलखाने में पागलों और अस्पताल में मरीज़ों को भी नाम का बिल्ला या बैंड लगाया जाता है ....

अतः सबको अपनी व्यक्तिगत स्थिति अनुसार अपने नाम का अंकन करने कराने का अधिकार है - और इसलिए मोदी जी द्वारा अपने कोट पर नाम के अंकन करने हेतु उनकी अनावश्यक निंदा की मैं कड़े से कड़े शब्दों में घोर निंदा करता हूँ ....
अरे !! उनकी निंदा ही करनी है तो कई सौ अन्य अनेक कारण हैं .... हैं ना !!!!

//// शोक सूचना - बीजेपी का गणतंत्र दिवस दिल्ली में खल्लास .... ////

कल बीजेपी का गणतंत्र दिवस दिल्ली में खल्लास हो गया ....
बारवां / तेरवीं की रस्म ७ फरवरी को दिल्ली में सुबह ८ बजे से शाम ५ बजे आहूत की गई है ....
उठावना १० फरवरी को प्रातः ८ बजे से "आप" के आने तक ....
साथ ही सूचित हो ....
मोदी सरकार का आठवाँ भी कल समाप्त हुआ और नवां लग गया है ....
जांच करवाई गई - हवा निकली ....
समय पूर्व देहावसान की शोक बैठक भी १० फरवरी को ही रखी गई है ....
सभी भक्तों के सूचनार्थ ....

Monday 26 January 2015

//// "अब तुम्हारे हवाले 'आम आदमी' साथियों " .... ////

अभी-अभी दुखद समाचार आया है .... // आर. के. लक्ष्मण नहीं रहे ....//
कई पीढ़ियों को गुदगुदाने वाले ....
कागज़ पर उकेरे कार्टून से कई हस्तियों को जीवंत करने वाले ....
कई महारथियों को निःशब्द करने वाले ....
एक 'आम आदमी' के जनक - 'आम आदमी' के खास प्रवक्ता वकील और संरक्षक - आर. के. लक्ष्मण नहीं रहे ....
इस नाचीज़ की अश्रुपूरित श्रद्धांजलि ....

एक कार्टून की परिकल्पना के साथ >>>>
{{{{ चेक कोट और धोती वाला वही मशहूर खासमखास 'आम आदमी' - परेड ग्राऊँड के आकाश से  हाथ हिलाते हुए कह रहा है कि - "इस गणतंत्र में आम आदमी कई वर्षों पहले भुलाया जा चुका था - इस गणतंत्र दिवस पर एक और 'आम आदमी' रुखसत हो रहा है .... अब तुम्हारे हवाले 'आम आदमी' साथियों ....नमस्ते ! जय हिन्द !!" }}}}

//// शायद इतने नज़दीक से दी गई आवाज़ भी उन्होंने सुनी नहीं होगी .... ////

मित्रों सर्वप्रथम निवेदन !! कृपया एक सारगर्भित वक्तव्य के अंशों का अवलोकन करें .....
>>>> >>>> >>>>                        
तीन दशकों के बाद जनता ने स्थाई सरकार के लिए, एक अकेले दल को बहुमत देते हुए, सत्ता में लाने के लिए मतदान किया है और इस प्रक्रिया में देश के शासन को गठबंधन की राजनीति की मजबूरियों से मुक्त किया है। इन चुनावों के परिणामों ने चुनी हुई सरकार को, नीतियों के निर्माण तथा इन नीतियों के कार्यान्वयन के लिए कानून बनाकर जनता के प्रति अपनी वचनबद्धता को पूरा करने का जनादेश दिया है। मतदाता ने अपना कार्य पूरा कर दिया है; अब यह चुने हुए लोगों का दायित्व है कि वह इस भरोसे का सम्मान करें। यह मत एक स्वच्छ, कुशल, कारगर, लैंगिक संवेदनायुक्त, पारदर्शी, जवाबदेह तथा नागरिक अनुकूल शासन के लिए था।
बिना चर्चा कानून बनाने से संसद की कानून निर्माण की भूमिका को धक्का पहुंचता है। इससे, जनता द्वारा व्यक्त विश्वास टूटता है। यह न तो लोकतंत्र के लिए अच्छा है और न ही इन कानूनों से संबंधित नीतियों के लिए अच्छा है।
बलात्कार, हत्या, सड़कों पर छेड़छाड़, अपहरण तथा दहेज हत्याओं जैसे अत्याचारों ने महिलाओं के मन में अपने घरों में भी भय पैदा कर दिया है। हर एक भारतीय को किसी भी प्रकार की हिंसा से महिलाओं की हिफाजत करने की शपथ लेनी चाहिए। केवल ऐसा ही देश वैश्विक शक्ति बन सकता है जो अपनी महिलाओं का सम्मान करे तथा उन्हें सशक्त बनाए।
भारतीय संविधान लोकतंत्र की पवित्र पुस्तक है। यह ऐसे भारत के सामाजिक-आर्थिक बदलाव का पथप्रदर्शक है, जिसने प्राचीन काल से ही बहुलता का सम्मान किया है, सहनशीलता का पक्ष लिया है तथा विभिन्न समुदायों के बीच सद्भाव को बढ़ावा दिया है। वाणी की हिंसा चोट पहुंचाती है और लोगों के दिलों को घायल करती है।
गांधी जी ने कहा था कि धर्म एकता की ताकत है; हम इसे टकराव का कारण नहीं बना सकते।
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मित्रों उपरोक्त वक्तव्य कल शाम राष्ट्रपति भवन से महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को दिए गए संदेश के अंश मात्र हैं ....
और ये वक्तव्य जिस व्यक्ति के लिए सबसे प्रासंगिक और आवश्यक थे वो व्यक्ति भी शायद ठीक उसी वक्त राष्ट्रपति भवन में ही मौजूद थे - पर शायद इतने नज़दीक से दी गई आवाज़ भी उन्होंने सुनी नहीं होगी - शायद इसलिए कि वो उसी वक्त भव्य भोज आयोजन में व्यस्त रहे होंगे ....
और वैसे भी उन्हें तो बोलने में महारत हासिल है - वो सुनते ही कहाँ हैं ....यदि सुनते ही होते तो शायद राष्ट्रपति जी को उपरोक्त वक्तव्य देने की आवश्यकता ही कहाँ पड़ती !!!!
और मित्रों अंत में एक और बात रखना चाहूंगा - उपरोक्त आंशिक वक्तव्य मैंने गूगल गुरु की मदद से प्राप्त किए हैं - जिसके भी अति सूक्ष्म अंश कुछ अखबारों के अंदर के पन्नों पर आज छपे मिले ....
और हाँ कुछ टीवी चैनल्स पर हाईलाइट के रूप में कल शाम भव्य भोज की विस्तृत कवरेज के पहले कुछ ऐसे अंदाज़ में बताये गए थे जैसे .... अभी-अभी समाचार मिला है कि नसरुल्लागंज में एक बम फटा है - या केजरीवाल की सभा में अंडे फेंके गए - या मेरठ में बारात ले जा रहा ट्रेक्टर रपटा छोड़ नाले में गिरा २५ मरे ५० घायल ....
और शायद आज मैं भी अपने आप को घायल और व्यथित ही महसूस कर रहा हूँ ....
फेंके हुए पत्थरों से नहीं बल्कि .... "अब तक बोली गयी उस वाणी की हिंसा से जो चोट पहुंचाती है और लोगों के दिलों को घायल करती है" ..... और उस वाणी को अनसुना कर देने के कारण भी जिस वाणी को आम और खास दोनों को सुनना अति आवश्यक था !!!!
महामहिम को सादर समर्पित - गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओ सहित .... !!!! जय हिन्द !!!!

Sunday 25 January 2015

//// राष्ट्रीय पर्व की मेजबानी यदि किसी घटिया व्यक्ति के हाथ में हो तो ?? ////

अटल जी की भाजपा मुझे अच्छी लगती थी - लेकिन मोदी जी की भाजपा बिलकुल नहीं ....
इसका प्रमुख कारण रहा .... मोदी जी की भाजपा का संकीर्ण "हिंदुत्व" और सांप्रदायिक स्वभाव ....
और जैसे जैसे समय बीता .... मोदी की भाजपा और सरकार को मुद्दों से भटकते वादों से भागते ही देखा .... और दिन-ब-दिन मेरा भरोसा इस सरकार से और ज्यादा उठता चला गया ....
और इसके बाद जब तब - - "पाकिस्तान भेज देंगे" - "ये पाकिस्तानी एजेंट है" - "भारत के सभी नागरिक हिन्दू हैं" - "देश में रहना है हिन्दू बनना होगा"  - "मादरे वतन की कसम ...." आदि टाइप के ओछे डायलाग सुनता था तो मुझे लगता था कि इनकी राष्ट्र के प्रति प्यार और निष्ठा भी कुछ विचित्र प्रकार की है .... जिसमे शायद स्वार्थ और राजनीति और पागलपन ही अधिक है !!!!

पर अब जब अरविन्द केजरीवाल  को गणतंत्र दिवस समारोह में निमंत्रण ना देने की बात सुनी और उसके बाद भाजपाई प्रवक्ताओं की दलीलें और बहस - तो मुझे लगा कि - मोदी की भाजपा वाला "राष्ट्र प्रेम" भी "प्रेम" और "राष्ट्रहित" से कोसों दूर है ....
६७ साल की आज़ादी के बाद शायद ये पहला प्रसंग होगा कि राष्ट्रीय पर्व के मौके पर किसी नेता को बुलाने ना बुलाने का विषय सर्वजन के समक्ष आया हो .... और दलील ये दी गई कि अरविन्द केजरीवाल ने साल भर पहले २६ जनवरी के पूर्व स्वयं मुख्यमंत्री होते हुए धरना देने के दौरान २६ जनवरी के समारोह के परिप्रेक्ष्य में कुछ टिप्पणी कर दी थी .... जिसका भाजपाई भाषा में ये आशय निकलता है कि - ऐसे टुच्चों को राष्ट्रीय पर्व पर क्यों बुलाया जाए ????
मैं गंभीरता से सोच रहा था कि राष्ट्रीय पर्व के सरकारी समारोह में एक बार मान भी लिया जाए कि टुच्चों को नहीं बुलाना चाहिए .... पर क्या इसका निर्णय करने का अधिकार कि कौन टुच्चा है कौन नहीं क्या किसी टुच्चे के पास होना चाहिए ????
और इसी कड़ी में मैं निहायत पेचीदगी से भरी इसके ठीक उलट एक और बात सोच रहा था कि यदि कोई घटिया व्यक्ति ही कार्यालय प्रमुख या शहर का मेयर या मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री आदि बन जाता है और वो स्वयं राष्ट्रीय पर्व के सरकारी समारोह की अध्यक्षता या मेजबानी करता हो तो क्या एक आम भारतीय द्वारा ऐसे समारोह का बहिष्कार करना उचित होगा ?? नहीं ना !!!!
और तो और क्या जेलों में भी झण्डावंदन होता है कि नहीं ?? तो फिर क्या इसे भी बंद करना उचित होगा ?? नहीं ना !!!!
तो क्या हमें कम से कम राष्ट्रिय पर्व केवल "भारतीय" होने के ही नाते मिलजुल कर नहीं मनाना चाहिए - फिर हम में से चाहे कोई अच्छा हो या बुरा ?? क्या राष्ट्र के मुख्य समारोह के निमंत्रण देने में किसी भी संकीर्णता या राजनीति का परिचय देना शोभा देता है ????
मित्रों सोचियेगा जरूर !!!! धन्यवाद !!!! जय हिन्द !!!!

//// पूरे ८ माह ....////

कल २६ जनवरी है ....
एक महान दिन ....
कल बहुत कुछ सामान्य विशेष और अति विशेष होने वाला है ....
कल पूरा राष्ट्र हर्षोल्लास से इस राष्ट्रीय पर्व को मनाएगा .... जगह जगह झंडा फहराया जाएगा - आसमान में गुब्बारे छोड़े जाएंगे - परेड होगी - झांकियां निकाली जाएंगी - ओजस्वी भाषण होंगे - देशभक्ति के गाने गाए बजाए जाएंगे - शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाएगी .....
और एक विशेष बात भी होगी - हमारे बीच एक अति विशिष्ठ मुख्य अतिथि होंगे - बराक ओबामा जी - अमेरिका के राष्ट्रपति - जिनकी मात्र उपस्थिति से ही हम गौरवान्वित होंगे ....
पर इस सबके बीच एक और अति विशेष बात भी होने जा रही है - जिसका संबंध इस देश की गरीब और आज़ाद आम जनता से ज्यादा है ....
जी हाँ मोदी सरकार के कल ८ माह पूरे हो जाएंगे ....
पूरे ८ माह .... जिस अवधि में गर्भ में एक शिशु पूर्णता हासिल कर लेता है ....
पर लगता है आशा और वादों के उस शिशु का गर्भपात हो गया है ....
आइये हम सब मिल कर इंतज़ार करें अगली २६ जनवरी का ....
इस आशा के साथ कि शायद तब तक 'विकास' का जन्म हो जाए और हम सबके 'अच्छे दिन' आ जाएं !!!!
आप सब को गणतंत्र दिवस की अग्रिम शुभकानाएं !!!! जय हिन्द !!!!

//// वो कुत्ते भी अपने साथ लाए हैं .... ये तो गलत है .... ////

बराक ओबामा आए हैं - उनका तहे दिल से स्वागत है ....
पर एक शिकायत और आपत्ति भी है ....
शिकायत ये कि वो कुत्ते भी अपने साथ लाए हैं .... ये तो गलत है .... ये तो भारतीय कुत्तों की तौहीन है ....
मैं दावे से कहता हूँ कि भारतीय कुत्तों का तो मुकाबला हो ही नहीं सकता .... हमने विगत वर्षों में किया ही क्या है - कुत्ताई पटकने में हमने कितना पसीना बहाया है कितना खून बहाया है ....
इंसानो के लाने की बात होती तो हम चूं भी नहीं करते - क्योंकि हम स्वयं स्वीकारते हैं कि शायद इंसानियत में आप हम बराबर हैं - और हमने कभी कोइ ऐतराज़ किया भी नहीं - आप अपने खाने पीने अपनी सुरक्षा आदि हेतु सैंकड़ों इंसानो के साथ आए हैं पर हमने रत्ती भर भी ऐतराज़ नहीं किया - आप हमारे मेहमान हैं आपकी हर बात सर आँखों पर - आपका इशारा ही हमारे लिए हुक्म है - आपने कहा ताजमहल देखने जाएंगे हमने पूरे क्षेत्र से इंसानों को हटवाने का प्रबंध कर दिया - आपने कहा हम नहीं जाएंगे - हमने कहा कोई बात नहीं - उसी क्षण हमने ताजमहल इंसानों के देखने हेतु खोल दिया ....
हमने आपके हर इंसान का भरोसा किया - पर आपने हमारे कुत्तों तक पर भरोसा नहीं किया .... भले ही आपने अपने स्वार्थ हेतु यह उचित ही किया हो .... पर आपके इस कृत्य से हमें ठेस पहुंचना तो स्वाभिक था ....
खैर जो हुआ सो हुआ - आप हमारे मेहमान हैं और मैं कुत्तों का विशेषज्ञ - इसलिए आप को मुफ्त में एक सुझाव दे देता हूँ ....
अमेरिका पहुंच अपने कुत्तों की चेकिंग जरूर करवा लीजियेगा - यहाँ की हवा ख़राब है बहुत जल्दी असर हो जाता है - आशा है आप समझ ही गए होंगे !!!!
और ऐसे ही हँसते रहिये मुस्कराते रहिये - ज़िन्दगी में व्यंग्य के मज़े लेते रहिये - और इस दुनिया को अच्छे से अच्छा बनाने के प्रयास करते रहिए !!!! धन्यवाद एवं अनेक शुभकामनाएं !!!!
भारत और अमेरिका की दोस्ती अमर रहे !!!!

Saturday 24 January 2015

//// ७ फ़रवरी मतदान दिल्ली में - मुख्यमंत्री बनेगी जम्मू-कश्मीर में .... ////

मित्रों आपने सुना होगा कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना ....
पर क्या जोड़ तोड़ की ऐसी सड़ी राजनीति की भी कल्पना करी थी कि चुनाव और मतदान कहीं पे और मुख्यमंत्री की ताजपोशी कहीं पे ????
नहीं सुना था ना - तो अब जान लीजिये ....
चुनाव दिल्ली में होने हैं - और ७ फ़रवरी को मतदान ....
और मतदान उपरांत मेहबूबा मुफ़्ती बन जाएंगी मुख्यमंत्री जम्मू-कश्मीर !!!!

और इस खुल्ले भेद का श्रेय मोदी / भाजपा को देते हुए उनकी शान में कुछ पंक्तियाँ >>>>
> अजब तेरी राजनीति ..
> गजब तेरी सेंध !
> ना शर्म का पता ..
> ना बचा कोई भेद !
> तू कहता है इसे ..
> बाप बेटी का खेल !
> मैं कहता हूँ ये है ..
> छड़े की रेलम पेल !!
"ब्रह्म प्रकाश दुआ - २४/०१/१५"

//// भिक्षुक बन मांगते ही रहोगे ? या फिर डिलीवर और परफॉर्म भी करोगे ?? ////


दुनिया का सबसे सुन्दर चेहरा दिल्ली का एक उच्च कोटि का भिक्षुक करोड़ों रूपए के विज्ञापन कर समारोह की बखूबी हाइप करवा परसों अपने भिक्षुक टाइप के ही दल-बल सहित हरियाणा पहुंचा - भीख मांगने ....
और वहां पहुँच उसने बक़ायद भीख मांगी - "बेटियों के जीवन की भीख" ....
सबका दिल द्रवित हो उठा ....

आपने भिक्षुक को भीख मांगते हुए तो देखा ही होगा पर शायद ही किसी भिक्षुक को किसी सार्वजनिक स्थल पर सलाह देते या प्रश्न पूछते देखा होगा ....
पर दुनिया के सबसे बड़े मांगू भिक्षुक ने सदाबहार सारगर्भित कॉपी-पेस्टेड प्रश्न भी पूछा कि "बेटी नहीं होगी तो बहू कहाँ से लाओगे ?" - प्रश्न इतना सरल था पर भक्त इसे भी जटिल समझ सुना है उत्तर समझने राजनीती की नई आलिया भट्ट के पास वापस दिल्ली पहुंचे हैं ....
लेकिन इसके उलट अब कुछ स्वाभाविक प्रश्न तो और भी उठ रहे हैं .... जिसके जवाब अब भिक्षुक को भी देने होंगे .... मसलन >>>>
> श्रीमान ये 'हाइप' करना कब बंद करोगे ?
> ये करोड़ों के समारोह और फ़िज़ूल विज्ञापन कब बंद करोगे ?
> ये प्रश्न पूछना और समस्या बताने का सिलसिला कब खत्म करोगे ?
> बार बार आवश्यकताओं को बताने का काम कब बंद करोगे ?
> कब तक घिसे पिटे अंदाज़ में पूछते ही रहोगे कि - ऐसा होना 'चाइये' कि नहीं ?
> केवल दूसरों को शिक्षा सलाह देने का काम कब बंद करोगे ?
> ये नित नए-नए वादे करना और आश्वासन देना कब बंद करोगे ?
> ये लफ़्फ़ाज़ी कब बंद करोगे ?
और ....
> स्वयं डिलीवर कब करोगे ?? परफॉर्म कब करोगे ??? करोगे भी कि नहीं ????

सीखो कुछ आयरन लेडी से .... जो पहले दिन से ही डिलीवरी-डिलीवरी का जाप करते हुए निकल पड़ी है दिल्ली में - वही दिल्ली जहाँ से आप हरियाणा पहुंचे थे भिक्षा मांगने !!!!

Friday 23 January 2015

//// ये तो गेले बच्चों की तरह रोने लगे .... ////


'आप' पार्टी ने आज किरण बेदी पर भाजपा के एजेंट होने का आरोप लगाया ....
भाजपा द्वारा ये प्रश्न खड़ा किया जा रहा है कि यह आरोप अब क्यों लगाया जा रहा है जब किरण बेदी ने भाजपा ज्वाइन कर ली है - पहले क्यों नहीं लगाया गया ??
और हाँ - स्वयं किरण बेदी आरोप पर अभी तक चुप हैं !!!!

मेरी विवेचना ....
जहाँ तक आरोप लगाने के समय का सवाल है 'आप' पार्टी ने भले नुकसान का आंकलन कर यह तय किया होगा कि अब आरोप लगाया जाए .... और इस प्रकार आरोप लगा दिया गया .... आखिर 'आप' भी एक राजनीतिक पार्टी है .... क्या उसे राजनीति करने का अधिकार नहीं है ?? .... स्वयं भाजपा ने भी किरण बेदी को अपनी अपनी इच्छा और सुविधा के समय मैदान में उतार कर क्या राजनीति नहीं की है ?? राजनीति नहीं की है तो क्या कोई धर्मार्थ का कार्य किया है ?? नहीं ना !!!!
अब जब किरण बेदी राजनीति में उतरी हैं तभी तो उन पर राजनीतिक आरोप लगेंगे - क्या उनको इसके लिए तैयार नहीं रहना चाहिए ??
तो ये कोई 'आप' पार्टी की गंदी राजनीति तो कदापि नहीं हुई - और यदि राजनीति में राजनीति का जवाब राजनीति से दिया भी गया है तो इतनी सकपकाहट क्यों ?

अब आरोप की बात हो जाए - क्योंकि किरण बेदी ने भाजपा ज्वाइन की है तो ये आरोप कि "किरण बेदी भाजपा एजेंट थी" स्वाभाविक रूप से बहुत तार्किक व दमदार लगने लगा है - और क्योंकि ये आरोप अब किरण बेदी पर चिपक सा गया है और चेंट भी गया लगता है तो किरण बेदी के पास यदि इसका जवाब हो तो दे देना चाहिए - और नहीं तो इस मुद्दे पर कलपते हुए चुप बैठे रहो - रोते चिल्लाते रहो अपरिपक्व गेले बच्चों की तरह !!!! नहीं क्या ??

//// सावधान !! "प्लेन" की जगह "सेकंड हैंड ८५ मॉडल की मारुती ८००" - तैयार रहें ////


कल भाजपाई अमित शाह ने कहा कि यदि अरविन्द केजरीवाल सत्ता में ५ साल रह गए तो इनके घर के सामने "प्लेन" खड़ा होगा ....
शाह नादान हैं भोले हैं - इनसे यथार्थ का आंकलन तो दूर कल्पना भी सही-सही पूरी-पूरी करते नहीं बनती .... आधी अधूरी कल्पना ही कर पाते हैं बेचारे .... और फिर ऐसे इतराते हैं जैसे इन्हें साधू साध्वियों की अनुशंसा पर भगवान से भविष्य दर्शन करते रहने का वरदान प्राप्त हो गया हो ....

पर मैं तो मेरी बुद्धि से ये आंकलन कर पाता हूँ कि केजरीवाल अगले कई ५ साल सत्ता में तो रहेंगे ही - और अगले ५ साल में जिनके घर के आगे आज प्लेन खड़े हैं उनके घर के आगे सेकंड हैंड ८५ मॉडल की मारुती ८०० खड़ी मिलेगी !!!! और मैडम इ-रिक्शा पर या मेट्रो में सफर करेंगी !!!! हा ! हा !!

मित्रों क्या है कई बार मूर्खतापूर्ण बातों का प्रतिकार मूर्खतापूर्ण प्रतीत समझदारी की बातों से करना पड़ता है - और कई बार काल्पनिक बातों का प्रतिकार यथार्थ के अग्रिम दर्शन करा कर !!!! है ना !!!!
इसलिए कृपया कोई भी भक्त इसे दिल से ना लगाए !!!! धन्यवाद !!!!

//// मैडम जी - आप इ-रिक्शा पर ?? ये क्या अनर्थ कर डाला आपने ?? ////

अरे "क्रेन" मैडम ये क्या बेवकूफी कर डाली आपने ????
आप इ-रिक्शा पर बैठ गईं - छिः !!!!
शायद आपको मालूम नहीं आपने कितनी बड़ी गलती कर मारी है ....
भले ही आप "आयरन लेडी" या "काई रैन लेडी" के नाम से प्रचारित की जा रही हों - पर आप तो अज्ञानी निकलीं !!!!
दिल्ली में आपके पैराशूट से लैंड करने के पहले आपके नए-नए ग्राह्य अध्यक्ष अमित शाह ने मालूम है क्या बोला था ?? >> ये अरविन्द केजरीवाल पिछले चुनाव में मेट्रो में चलते थे - पर चुनाव बाद क्या हुआ ? देखा आपने केजरीवाल को उसके बाद मेट्रो में ? ये नौटंकी करते हैं - ये धोखेबाज़ हैं - ये अराजक हैं - ये "U" टर्न लेने वाले लोग हैं - ये झूठ की फैक्ट्री चलाते हैं - आदि इत्यादि !!!!
तो अब आप क्या करेंगी मैडम ? चुनाव बाद भी इ-रिक्शा पर चलेंगी या .... ????
फंस गईं मैडम आप तो फंस गईं ....
इन भाजपाइयों ने तो आपको चक्रव्यूह में फंसा मारा ....
इसलिए कि मुझे मालूम है कि इ-रिक्शा में चलना आपको सहज रुचिकर और उपयुक्त नहीं रहेगा - और इसके एवज में आपको गालियों से कोई फरक नहीं पड़ेगा .... है ना !!!!
पर मेरा सुझाव है कि ऐसे काम ही क्यूँ करना जिसके कारण गालियां पड़ें ?
शौक पालना है तो कोई अनूठा शौक पालें मैडम ....
याद रहे कि केजरीवाल छाप शौक पाल कर आप मुख्यमंत्री थोड़े ही बन जाएंगी ?
ऐसे में तो मुख्यमंत्री केजरीवाल ही बन जाएंगे - है ना !!!! .... है ना मैडम जी !!!!

Thursday 22 January 2015

//// अरे उस बूढे बाबा की भी तो सुनो .... ////


एक अधेड़ महिला को मिर्गी का दौरा पड़ा और वो बीच चौराहे बेहोश हो गिर पड़ी ....
काफी भीड़ इकट्ठा हो गयी - चिंता और उपचार की बातें होने लगीं .... अलग अलग आवाज़ें आ रहीं थीं >>
> अरे ज़रा दूर हो जाओ हवा आने दो ....
> अरे इसे पानी का छींटा मारो ....
> अरे इसकी नाक पर गोबर का ओपला रख दो ....
> अरे इसे चप्पल सुंघा दो ठीक हो जाएगी ....
इसी दौरान एक बुज़ुर्ग भी बार-बार बोल रहे थे कि - ये मिर्गी का दौरा है - इसे गरम-गरम जलेबी खिलाओ ये ठीक हो जायेगी ....
पर भीड़ ज्यादातर हवा आने पर, चप्पल सुंघाने, पानी का छींटा मारने आदि का मन बना रही थी ....
इतने में महिला ने धीरे से आँखे खोलीं और बूढ़े बाबा की तरफ इशारा करते बोली .... अरे भैया कोई उस बूढ़े बाबा की भी तो सुनो - वो जलेबी की कह रहे हैं - सुनो बाबा क्या कह रहे हैं - सुनो !!!!

मित्रों आज मुझे उपरोक्त किस्सा याद हो आया - क्योंकि .....
आज मैंने देखा भाजपा को मिर्गी का दौरा पड़ा था - वो चौराहे पर बेहोश पड़ी थी - और तमाम बहस के बीच वो आज बोली - अरे सुनो - शांति भूषण जी क्या बोल रहे हैं !!!!

//// अतुलनीय की तुलना ? अरविन्द केजरीवाल - बनाम - किरण बेदी ?? ////

अभी एक नई बहस की चेष्टा की जा रही है - और बहस है अरविन्द केजरीवाल और किरण बेदी की व्यक्तिगत तुलना विषयक .... हर कोई दोनों की समानताएं और विशेषतायें बता रहा है ....
मोटे तौर पर बहस में एक पक्ष ये कह रहा है कि अब जब किरण बेदी भाजपा में आ गई हैं तो वे अच्छी कैसे हो गईं और पहले गलत क्यों थीं ? और एक पक्ष ये पूछ रहा है कि भाजपा में आने के पहले किरण बेदी यदि अच्छी थीं तो वो आज क्यों गलत हो गईं ???? आदि इत्यादि ....

मैं ऐसी अपरिपक्व बातों पर अपनी-अपनी सुविधा और मौकापरस्ती के उद्देश्य से की जा रही बहस को ख़ारिज करता हूँ .... और अपनी विवेचना और अभिमत आपके समक्ष रखता हूँ !!!!

// सर्वप्रथम तो मैं भाजपाइयों और किरण बेदी को चैलेंज करता हूँ कि यदि बहुत शौक है किरण बेदी और केजरीवाल की तुलना करने का तो किरण बेदी भी पहले अपने दमखम से एक राजनीतिक पार्टी बना के बताएं ???? याद रहे मौकापरस्ती का घटिया परिचय देते हुए एक घटिया पार्टी ज्वाइन करने में तो एक दिन लगता है बल्कि आजकल तो बस एक मिस कॉल - पर 'आप' जैसी पार्टी का निर्माण करने में एक विशेष योग्यता दूरदर्शिता कड़ी मेहनत दृढ़संकल्प परिपक्वता सही नीयत और कई वर्ष का समय लगता है - ये कोई बच्चों और टुच्चों का खेल नहीं है - समझे श्रीमान श्रीमती ?? //

आगे मैं पूछना चाहता हूँ कि एक भाजपाई की क्या परिभाषा है - यही ना कि वो भाजपा में हैं ?
यानि आज से ५ दिन पहले किरण बेदी भाजपाई नहीं थीं .... पर आज वो भाजपाई हैं !!
और किरण बेदी कोई निर्दलीय चुनाव नहीं लड़ रहीं है - और वो भाजपा मुख्यमंत्री की ही तो उम्मीदवार हैं - और यदि वो मुख्यमंत्री बनती हैं या वो केवल एक विधायक ही चुन के आती हैं - तो भी क्या वे स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकेंगी ? क्या तब उन पर पार्टी अनुरूप चलने का दायित्व और मजबूरी नहीं होगी ? क्या तब उनको पार्टी व्हिप मान्य नहीं करनी होगी ? क्या मोदी-शाह की इच्छा अनुसार कार्य करना आवश्यक नहीं होगा ? क्या तब उनको अपने 6P के अलावा 10X 50Y 100Z आड़े नहीं आएंगे ??

मित्रों ये बात अच्छे से समझने की आवश्यकता है कि अब जबकि किरण बेदी एक भाजपाई भी हो गईं हैं अतः उनका स्वतंत्र आंकलन करना बेमानी होगा .... ठीक वैसे ही जैसे अरविन्द केजरीवाल के द्वारा जन आंदोलन छोड़ 'आप' पार्टी बनाने के बाद उनका भी आंकलन स्वतंत्र रूप से नहीं होता है - बल्कि उनका आंकलन एक राजनीतिक नेता और 'आप' पार्टी के प्रमुख के रूप में होता है ....
मसलन जब सोमनाथ भारती या फर्जी स्टिंग CD जैसे प्रकरण हुए - अभी दो उम्मीदवारों का टिकट काटने का वाकया हुआ - जब तब बिन्नी अन्ना शज़िआ किरण आदि के बारे में बातें उछली - तो क्या हुआ ? प्रश्न केजरीवाल के समक्ष रखे गए कि नहीं ? और क्या केजरीवाल ने सभी प्रश्नों के जवाब दिए कि नहीं ? और क्या वे जवाब एक पार्टी प्रमुख की हैसियत से दिए गए कि नहीं ? वो भाग तो नहीं गए कि मैं तो केजरीवाल हूँ जाओ उनसे पूछो जिनसे ये सवाल संबंधित हैं ? नहीं ना !! .... यानि ये सिद्ध होता है कि अब केजरीवाल केवल केजरीवाल नहीं हैं वो एक 'आपियन' भी हैं - वो 'आप' पार्टी के प्रमुख भी हैं - और उस पार्टी के प्रति जवाबदेह भी !!!!

इसलिए अब क्योंकि अरविन्द केजरीवाल 'आपियन' हैं और किरण बेदी 'भाजपाई' इसलिए यदि उनकी राजनीतिक तुलना करनी ही है तो ये तुलना समग्र रूप से ही करना होगी .... उनकी व्यक्तिगत गुणदोष के अलावा उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता के गुणदोष भी देखने ही होंगे !!!!

इसलिए मैं पाता हूँ कि मौकापरस्त बदनीयत बड़बोली फेंकू किरण बेदी न केवल व्यक्तिगत गुणदोष में क्रांतिकारी ईमानदार अरविन्द केजरीवाल के विरुद्ध घटिया हैं - बल्कि अब वे राजनीतक प्रतिबद्धता के मामले में भी एक 'भाजपाई' होने के कारण जो सांप्रदायिक हैं - और अपने वायदों से पलटे मोदी की कृपा आश्रित और उनकी समर्थक होने के नाते भी - और भी घटिया हैं ....
// इसलिए एक हस्ती और एक व्यक्ति की उपरोक्त तुलना में मैं अरविन्द केजरीवाल की हस्ती को किरण बेदी से बहुत ऊपर आँकता और मानता हूँ !!!! //

और हाँ - अभी भी यदि किसी भक्त को तुलना करने का शौक बच गया हो तो कोई बात नहीं - मोदी और क्रांतिकारी केजरीवाल की भी तुलना कर लेंगे - पर सही वक्त पर फिर कभी - इसी अंदाज़ में !!!! जय हिन्द !!!!

//// शाब्बाश किरण बेदी जी - बस आप ऐसे ही बोलती रहें - और स्वच्छंद विचरण व्यवहार करती रहें - ताकि आपके "3 म" = "मन" - "मस्तिष्क" - "मंशा" को हम समझ सकें ....////

अभी जुम्मा-जुम्मा २-४ दिन पहले ही तो किरण मैडम ने भाजपा ज्वाइन की थी ....
किरण बेदी ने पहले मोदी के लिए कसीदे पढ़े ....
फिर अमित शाह की भी तारीफ करी ....
फिर भाजपा पार्टी के लिए भी बचते बचाते सकुचाते थोड़ी तारीफ कर दी ....
और कल उन्होंने आरएसएस की भी तारीफ करी ....
और कल ही किरण बेदी जी ने लाला लाजपत राय जी को भाजपा का दुपट्टा ओढ़ा उनका अभूतपूर्व सम्मान भी किया ....
और जब तब अपने बारे में भी तारीफ़ करती ही रहती हैं ....
इतने अल्प समय में इतनी उपलब्धियां !! बधाई !!!!
तो क्या किरण बेदी अगले २-४ दिन में या चुनाव पूर्व विश्व हिन्दू परिषद बजरंग दल मोहन भागवत आदित्यनाथ साक्षी महाराज निरंजन ज्योति प्राची प्रवीण तोगड़िया अशोक सिंघल आदि के बारे में भी तारीफ या निंदा की टिप्पणी देने की कृपा करेंगी ?? या दिल्ली से संबंधित कुछ चर्चित महत्वपूर्ण और विवादित मुद्दों जैसे कि बिजली कंपनियों का ऑडिट - तेज भागते मीटर - पूर्ण राज्य का दर्जा - स्मार्ट सिटी - टॉयलेट - स्वच्छता - अवैध कॉलोनी - आदि मुद्दों पर भी अपनी राय रखेंगी ????
मेरा आंकलन है कि आज की तारीख  में पूरी भाजपा में सभी दिल थाम के बैठे हैं डरे हुए हैं और चाह रहे हैं कि ये बेलगाम बड़बोलबच्चन मैडम जितना चुप रहे उतना ही बेहतर - क्योंकि जब भी मुंह खोलती हैं तो सभी भाजपाइयों की साँसे अटक जाती हैं ....
पर मेरी तो इच्छा और प्रार्थना है कि किरण बेदी जी मुहं खोलती रहें ताकि हम भी पारदर्शिता के साथ उनकी "3 म" = "मन" - "मस्तिष्क" - "मंशा" को चुनाव पूर्व ही ठीक से समझ सकें !!!!
अतः सभी को अनेक शुभकामनाओं सहित मैं किरण बेदी जी को उनके द्वारा आरएसएस के बारे में दिए उदगार हेतु एवं अगले उदगार की प्रत्याशा में और देशहित में धन्यवाद देता हूँ - और आशा करता हूँ कि वे ऐसे ही स्वच्छंद विचरण और व्यवहार करती रहेंगी !!!!

Wednesday 21 January 2015

//// माल्यार्पण या "माल-अर्पण" .... बेड़ा ही गर्क होता दिख रहा है !! .. ////

आपके मन में श्रद्धा हो न हो - पर आपको चुनावी रणक्षेत्र में आते ही मंदिर मस्जिद संतो मौलवियों आदि को मत्था टेकने अरदास करने पूजा प्रार्थना करने हाथ पाँव जोड़ने जाना ही पड़ता है ....
और इसके साथ ही आप जिस पथ पर भी अपने चरणों को प्रशस्त करते हैं उस पथ पर महीनों से खड़े धूल-धूसरित पुतले को माल्यार्पण करना भी अतिआवश्यक हो जाता है ....
तो आज भाजपा में पैराशूट से लैंड करी भाजपाई संस्कारों से लैस किरण बेदी को कुछ लम्बाई रोड से भी तय करना अपरिहार्य था - वो अपना परचा भरने निकली थीं ....
पर रास्ते में आन पड़ी लाला लाजपतराय जी की धूल-धूसरित मूर्ती ....
और इसलिए परम्पराओं के अनुसार उनका माल्यार्पण होना अतिआवश्यक हो गया ....
६५ की उम्र में शरीर से चपल किरण बेदी चढ़ गयीं और ला खड़ा किया अपने को मूर्ती के समकक्ष ऊंचाई पर - फिर मूर्ती को पोंछा - ऊपर नीचे आगे पीछे - फिर गले में पड़े कमल छाप भगवा भाजपाई दुपट्टे से चेहरा ऐसे साफ़ किया मानो उन्हें वैसा ही चेहरा दिख रहा हो जैसा कि मोदी जी का हो जिसका नाटकीय वर्णन उन्होंने पार्टी में आते ही किया था ....
और फिर उन्होंने कर दिया माल्यार्पण ....
पर ये क्या ?? चंद क्षणों में ही किरण बेदी ने अपना वही कमल छाप भगवा भाजपाई गंदा दुपट्टा उतार पलक झपकते पहना मारा लाला लाजपतराय जी की असहाय मूर्ती को .... शायद ये "माल-अर्पण" था - भाजपा के गंदे माल का अर्पण ..... छिः!!!!
मूर्ती तो निर्जीव थी कुछ नहीं बोली पर नीचे से किसी सामान्य समझदार ने चिल्ला कर चेताया कि ये क्या बेवकूफी हो रही है .... तो मैडम ने अगले ही क्षण पलक झपकते वही दुपट्टा मूर्ती से उतार अपने गले में डाल लिया .... और फिर नीचे अपनी औकात के समक्ष उतर आईं ....
और बात यहीं खत्म नहीं होती है - जब तत्काल बाद उनसे किसी पत्रकार ने उनकी इस घटिया हरकत के कारण उठे विवाद पर प्रतिक्रिया चाही तो बिना किसी खेद के मैडम ने कहा कि वो तो लाला लाजपतराय जी का आशीर्वाद लेने गयीं थीं .... बस .... हो गया .... फालतू बातें न हों .... बस ....
मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि जिस नेता को ६५ साल की उम्र में भी सामान्य शिष्टाचार की मूलभूत जानकारी नहीं हो - जिनको राजनीति के "DOs & DONTs" की माहिती ना हो - और जिसमें ससमय खेद प्रकट करने का साहस या चातुर्य ना हो वो राजनीति और जनसेवा क्या खाक करेंगी ???? लगता है वो तो बेड़ा गर्क ही करेंगी !!!!

//// "तेज़ मीटर वाले दिल्ली भाजपा अध्यक्ष" ////

मित्रों दिल्लीं में बिजली के मीटर बहुत तेज़ चल रहे थे - पर उनसे भी ज़्यादा तेज़ चल रहे थे मीटर वाले भाजपा अध्यक्ष .... जी हाँ जब से उन्होंने दिल्ली की कमान सम्हाली थी तब से ऐसे बयान देते थे कि उनसे बड़ा कोई 'स्टेट्समैन' हो ही नहीं सकता - और हमेशा चेहरे पर एक चमक और शरारती मुस्कान और शानपत झलकती रहती थी !!!!
पर ऐन मौके पर मफलर मैन आए और उन्होंने मीटर वाला तार छुआ दिया .... जनाब झटका खा गए .... पर फिर भी पूरी कोशिश करते रहे की झटके का असर जाहिर ना हो ....
पर ये क्या - देखते ही देखते कोई पैराशूट से उतरा और उसने आव देखा ना ताव - बस पलक झपकते मीटर वाले तार का बटन ऑन कर दिया ....
जनाब वो झटका लगा वो झटका लगा कि होश उड़ गए - और झटका कितना तगड़ा था ये उनका कल चेहरा देख कर साफ़ मालूम पड़ रहा था ....
उनके ही समर्थक उनके ही कहने से उनके ही समर्थन में उनके ही सामने उनकी ही छिछालेदारी होने के विरोध में उनकी ही कार को घेर उनके ही नाम के नारे लगा तगड़ा प्रदर्शन कर रहे थे ....
और जनाब वो कभी ख़ुशी कभी गम वाले स्टाइल में चेहरे पर एक स्पष्ट खिसियाहट के साथ दिख रहे थे .... मुस्कुरा भी इतना ही रहे थे कि कहीं गुटखे वाले दांत ना दिख जाएं - और गुस्सा भी ऐसा कि माथे पर शिकन नहीं ....
और उसके बाद जब वे मीडिया के सामने आये तब तक शायद हाईकमान का एक हाईवोल्टेज झटका उन्हें और लग चुका था - इसलिए बेचारे शिकायत भी ना कर सके - दर्द का इज़हार भी नहीं कर सके - दिल के अरमान आसुओं के द्वारा बहा भी ना सके !!!!
और अब तो मुझे ये लगता है कि धीरे-धीरे हौले-हौले आहिस्ता-आहिस्ता वो नेपथ्य की ओर अग्रसर होते रहेंगे और चुनाव तत्काल बाद एकाएक इतिहास के गड्ढे में गिर जाएंगे .... धड़ाम !!!!
और भविष्य में लोग उन्हें ऐसे याद करेंगे - "तेज़ मीटर वाले दिल्ली भाजपा अध्यक्ष" !!!!

Tuesday 20 January 2015

//// नामी-गरामी बड़बोलों की पार्टी - बहस से परहेज़ क्यों ?? ////

केजरीवाल ने किरण बेदी और उनके बीच डिबेट हेतु प्रस्ताव रखा ....
किरण बेदी ने इंकार कर दिया ....
दलील दी कि बहस क्यों करें - अभी तो डिलीवरी का समय है ....
भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा बोले कि बहस करने के लिए वो डिबेटर लोग मौजूद हैं - और डिबेट होती रहती है - इसलिए ही पार्टी प्रवक्ता होते हैं जो अपनी और पार्टी की बात रखते हैं और बहस करते रहते हैं - फिर परफ़ॉर्मर यानि जिनको परफॉर्म करना है वो क्यों बहस करें ??
मेरी प्रतिक्रिया >>>>
परफॉरमेंस का समय कब आता है - डिलीवरी कब होती है - हनीमून पीरियड क्या होता है कितना होता है .... आदि विषयों में भाजपा कच्ची है ....
इनको तो बस एक बात मालूम है कि हिन्दू महिलाओं को ४ बच्चे पैदा करने चाहिए !!!!
मुझे इस बात का भी आश्चर्य है कि किरण बेदी जी को चुनाव पूर्व डिलीवर क्या करना है ? अरे उन्हें तो मात्र अपना और अपनी पार्टी का चुनाव प्रचार करना है - लेकिन न जाने क्यों वो डिलीवर करने की बात कर रहीं हैं .... और इसके उलट एक हमारे प्रधानमंत्री हैं जिन्हें डिलीवर करना है और परफॉर्म भी करना है - पर वे जब तब चुनाव प्रचार ही करते रहते हैं .... तो क्या संबित पात्रा ये भी बताएँगे कि भाई चुनाव रैली में भी पार्टी प्रवक्ता ही क्यों नहीं आ कर अपनी बात बता जाते ??
मित्रों असल बात तो ये है कि मेरे अनुसार भाजपा एक ऐसी पार्टी है जिसके सिद्धांत जरा खुल के बताने लायक नहीं हैं - मसलन ये कभी भी खुल के ये नहीं बता सकते कि ये सेक्युलर नहीं हैं - पर इन्हे झक मार कर सेक्युलर पेश आना पड़ता है - मसलन ये अभी ऐसा खुल कर नहीं बोल सकते कि इन्होनें तय कर लिया है कि अपनी राजनितिक शक्ति के बल पर सभी पार्टियों और अन्य गुटों को तोड़कर अपनी राजनीतिक शक्ति को और बढ़ाते रहो - पर क्योंकि कर यही रहे हैं इसलिए इस बहस से भी बचना इनकी मजबूरी है ....
और शायद इसलिए ही कई मामलों में इनका एक स्टैंड नहीं रहता है - और इसलिए ये नामी-गरामी  बड़बोलों की पार्टी है जैसे कि मोदी जी और किरण बेदी - जिनसे आप एक तरफ़ा घंटो बुलवा लो पर जैसे ही मामला आमने सामने बहस और मुद्दों का आ जाए तो ये असहज हो जाते हैं - बहस में भी चिल्ला चोट करने लगते हैं - मुद्दों की बात कभी नहीं करते - क्योंकि इनके पास कई बातों का जवाब ही नहीं है - और इनके कई स्पष्ट विरोधाभास जनता के समक्ष में आ चुके हैं - और कई संभावित प्रश्नों से तो इनकी रूह कांप जाती है !!!!
और इसलिए ये मुद्दों की बहस ना तो कभी कर सकते हैं और ना ही करेंगे - अतः आपको ही स्वयं अपने दिमाग से हर बात को तर्क के साथ नाप तोल कर उचित निर्णय करने होंगे !!!! धन्यवाद !!!!

//// ये कैसा "भगोड़ा" है - जो खुद बैठा है और विरोधियों को दौड़ा-दौड़ा मार रहा है ?? ////

अब दिल्ली में साल भर बाद दुबारा चुनाव हो रहे हैं और सरगर्मियां चरम पर पहुँच गयी है ....
और मैं देख रहा हूँ कि जिस अरविन्द केजरीवाल को कुछ मसखरों द्वारा "भगोड़ा" की संज्ञा दी जा रही थी वो केजरीवाल आज दिल्ली में ऐसे जमकर बैठा है कि उसने एक हलचल पैदा कर रखी है और विरोधियों को दौड़ा दौड़ा कर थका मारा है !!!!
आप देखिएं की भाजपा कांग्रेस के सारे चेहरे सारी प्राथमिकताएँ सारे तेवर तरीके बदल गए उलट पलट गए छिन्न भिन्न हो गए - पर यदि कुछ नहीं बदला तो वो है केजरीवाल !!!!
पहले कांग्रेस और फिर भाजपा स्वयं चुनाव से भागते रहे - इन्होने तो LG तक को दौड़ा मारा ....पर केजरीवाल ने भी कहा कि 'बच्चू भागते कहाँ हो' - और अंततः ला ही पटका चुनाव के मैदान में - और तब से ये फिर रनिंग मोड में आ गए है - इनकी अनवरत दौड़ भाग जारी है ....
और अब चुनाव आते आते तो भाजपा ने हद ही कर दी - सारी मर्यादाओं को तोड़ डाला - सारी नैतिकता गिरवी रख दी - और बस सब दौड़ रहे हैं भाग रहे है - कोई हताश हो न्यायलय में भाग रहा है कोई चुनाव आयोग भाग रहा है - कोई करोड़ों रुपये खर्च कर रैली करने के लिए ३००-४०० नेताओं का मजमा लगा रहा है .... कोई दूसरी पार्टियों के नेताओं को भगा कर अपनी पार्टी में ला रहा है - तो कुछ "ON-SALE" वालों के पीछे पीछे भाग रहा है !!!!
पर अंततः कुछ कारगर होता नहीं दिख रहा है - इसलिए अब तो ये हांफ भी रहे हैं - मुंह पर हवाइयां उडी हुई हैं - और बोली तिलमिलाई हुई है - IRON को ये I RUN - I RUN कहने लगे हैं .... इन्हे वही भगोड़ा अब एक भूत के रूप में सुबह शाम डरा रहा है - और भूत भी नक्सली और अराजक ? जिससे इनकी एक IRON LADY बहस करने से भी डर रही है .... जिसे देख किसी के पसीने छूट रहे हैं तो किसी की हवा निकल रही है !!!!
और कल तो मज़ा आ गया - मैंने देखा कि एक "क्रेन" ट्रक पर चढ़ दिल्ली की दौड़ लगा रही थी ....
तो मित्रों !! साल भर में इन भाजपाइयों के तो चेहरे भी बदल गए हैं - नाम भी बदल गए और नीति भी - बस कुछ नहीं बदला तो बदनियती ....
और एक केजरीवाल हैं - न नाम बदला न नीति बदली न नीयत बदली - सब कुछ अटल स्थिर दृढ़ और ठोस !!!!

Monday 19 January 2015

//// "फेंकू फीवर" का असर अब इंदौर में भी .... ////

इंदौर में ३१ जनवरी को नगर निगम के चुनाव होने हैं ....
वायदों और बयानों का अंबार लगा है ....
लोकल मुद्दों को नज़रअंदाज़ कर शायद केंद्र में लेटेस्ट फैशन में रहे स्मार्ट मुद्दों के आसपास ही यहाँ भी मुद्दों को चिल्ला-चिल्ला कर नई पैकिंग के साथ परोसने का प्रयास हुआ है ....
पर ऐसे ही प्रयास में लगता है हमारे इंदौरी तो हद पार कर गए - भाई लोगों ने ऐसा शगूफा छेड़ा है कि आप भी दातों तले पंजा चबा मारेंगे ....
जी हाँ कहा जा रहा है - और अखबारों में सुर्ख़ियों में छप रहा है - कि इंदौर में ऐसी आदर्श सड़क बनाएंगे जो ऐसी साफ़ होगी ऐसी लम्बी चौड़ी होगी ऐसी विशेष होगी इतने में बनेगी ऐसे बनेगी कि .... जी हाँ दिल थाम के बैठें .... कि ....// जिस पर बैठ भोजन किया जा सके // ....
मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि जब अभी भी नगर निगम के अधीन ऐसे गंदगी से भरे कार्यालय और भवन मौजूद हैं जहाँ शायद कोई हगना मूतना भी पसंद ना करे - और नगर में अभी भी इतनी गरीबी और अनेक गरीब हैं जिन्हे एक वक़्त का भोजन भी नसीब नहीं है - तब ऐसी उच्च कोटि की फेकम बात किस के दिमाग का फितूर हो सकता है ????
माफ़ करें मुझे लग रहा है कि ये "फेंकू फीवर" महामारी की तरह फ़ैल रहा है ....
इसे जल्द रोक - व्यवहारिक धरातल पर रहते हुए अपने दिमाग का उपयोग करते हुए सही प्राथमिकताओं का निर्धारण कर ही आगे बढ़ना श्रेयस्कर होगा !!!! धन्यवाद !!!!

//// तैयार रहें - हम अपने को लुटता पिटता देखेंगे - वो भी प्रजातान्त्रिक तरीके से ////

आजकल राजनीति में एक नई नायाब विधा सामने आई है जो बहुत ही विचित्र हास्यास्पद होने के साथ बहुत ही घातक भी है ....
आजकल लगभग सभी नेताओं के इ-अभिलेख विद्यमान हैं जिसके कारण ओछे से ओछा और शाने से शाना नेता भी अब यह तो नहीं कह सकता कि मैंने ऐसा नहीं कहा था वैसा नहीं कहा था ....
तो यदि अब किसी बेशर्म को अपनी बात से पलटना हो तो ? यानि "U" टर्न लेना हो तो ? तो क्या किया जाए ?
मित्रों मैं बताता हूँ कि अब क्या किया जा सकता था और क्या किया गया है ....
// या बेशर्मी तेरा ही आसरा //
मसलन किरण बेदी जी के ऐसे गजब के इ-अभिलेख विद्यमान हैं जिसको झुठलाया नहीं जा सकता था - तो जनाब मैडम ने क्या कह दिया - मेरे विचार बदले गए - मेरा दिल बदल गया ....
मित्रों ये एक नए प्रकार की घातक राजनितिक बेशर्मी है ....
घातक क्यों है ?? ज़रा गौर फरमाइए >>>>
मुझे ये स्पष्ट हो चुका है कि मसलन कांग्रेस और भाजपा दोनों अंदर से मिले हुए रहे - उनके आका भी एक ही रहे - उनके नेता आपस में घुलते मिलते रहे - मिल जुल के भ्रष्टाचार भी करते रहे - एक ही परिवार में कुछ कांग्रेस में रहे कुछ भाजपा में .... पर फिर भी खुल के सामने नहीं आते थे अपवादों को छोड़ कर .... यानि एक शर्म का पर्दा या आवश्यक पर्दा तो था ही ....
पर इस बार १०० से ज्यादा वर्तमान भाजपा सांसद कांग्रेस से लाए गए या कांग्रेस से आए - और अब तो भाजपा ने ये नीति ही सार्वजनिक कर दी है कि जो भी अच्छा बुरा छोटा बड़ा लायक नालायक भाजपा में आना चाहे उसका स्वागत है ....
इसका सबसे ताज़ा उदाहरण किरण बेदी का भाजपा में आना है - और भाजपा का किरण बेदी को लेना है .... बावजूद इसके कि - किरण बेदी भाजपा और मोदी के लिए और भाजपाई किरण के लिए इ-अभिलेख में वो दर्ज करा चुके हैं जो घोर विरोध ही नहीं अपितु बिलकुल उलट विचारधारा की मिसाल माने जा सकते हैं ....
और मित्रों - ये सब घातक इसलिए है कि अब ऐसा होना इतना आसान बना दिया गया है जितना पहले कभी नहीं था - यानि बस कहिये कि मेरा दिल बदल गया और काम बन गया ....
तो अब आगे से ये सारे चोर लुटेरे डकैत खुल्ले बेपर्दा हुए - और ये आपस में चुनाव लड़ते तो दिखेंगे पर चुनाव पहले कौन किसके साथ था चुनाव बाद कौन किसके साथ होगा आप कुछ भी अनुमान नहीं लगा सकेंगे .... क्या भरोसा कि जब भाजपा एनसीपी मिल बैठे और भाजपा पीडीपी मिल बैठे तो कल भाजपा और कांग्रेस क्यों नहीं मिलेंगे ????
और क्यूँ ऐसा नहीं हो सकेगा कि मसलन जीतन मांझी बिहार के भाजपाई मुख्यमंत्री हो जाएँ या फिर ओवैसी आंध्र के भाजपाई मुख्यमंत्री या फिर शिवराजसिंह चौहान अगले कोंग्रेसी प्रधानमंत्री बन जाएं ????
तो यानि - ना तो होगा कोई राजनीतिक पक्ष और ना ही होगा कोई विपक्ष ....
होगा तो एक सत्ता पक्ष और विपक्ष में होगी जनता .... जी हाँ आप और हम ....
शायद तब हम रो रहे होंगे प्रजातंत्र को - जो तानाशाही से भी घातक रूप ले चुका होगा ....
और शायद हम मजबूरी में बस अपने को लुटता पिटता देखेंगे - वो भी प्रजातान्त्रिक तरीके से !!!!

Sunday 18 January 2015

//// बहुत जल्दी ........ कि ... कि ... कि ... कि ... किरण !!!! ////

अभी-अभी तो जश्न और होहल्ले के साथ आगाज़ हुआ था -  सूत्रों के द्वारा बता दिया गया था कि शायद यही हैं CM की उम्मीदवार - मैडम ने खुद "शायद" शब्द को विलोपित कर बता दिया था कि जो कुछ हैं वहीँ हैं .... मैडम ने क्लास भी ले ली - सारे दिग्गज ऐसे खड़े बैठे मुहं ताकते रहे जैसे स्कूली बच्चे ....
सब दूर से किरण किरण किरण किरण की आवाज़ दी जाने लगी और आने लगी .... और किरण की गाड़ी टॉप गियर में डाल धकेल दी गयी ....
पर आज ही से कुछ रिवर्स गियर लगा .... राजनाथ ने कह दिया - CM के पद का निर्णय अभी नहीं हुआ है .... फिर आज मैडम की प्रस्तावित रैली भी निरस्त कर दी गयी .... फिर आज किसी भाजपाई के चेहरे और वाणी में उत्साह नज़र नहीं आया .... और बची खुची कसर केजरीवाल ने सहजता के साथ वो साधारण सा तथ्य चिपका पूरी कर दी कि - दिल्ली की जनता किरण बेदी को उनके लिए चुनौती नहीं मानती बल्कि जनता तो उन्हें दिल्ली में १५ दिन पहले हेलीकाप्टर से उतारी गयी नेता मानती है ....
तो मित्रों !! अब तक की गतिविधियों के मद्देनज़र मुझे तो यही लगता है कि सारे भाजपाई जो अभी तक किरण किरण किरण चिल्ला रहे थे या चिलवाये जा रहे थे - बहुत जल्दी शाहरुख़ स्टाइल में बोलते नज़र आएंगे ....
कि ... कि ... कि ... कि ... किरण !!!!

//// भक्तों के लिए ये "मिस्ट्री" हो सकती है - पर मेरे लिए ये "ओपन सीक्रेट" है !! ////

कल एक साक्षात्कार में भाजपा की अब नंबर २ की स्थापित फेंकू नेता यह बता रहीं थीं कि वो कैसे भाजपा के नंबर १ के फेंकू नेता से प्रभावित हो भाजपा में शामिल हुईं !!!!
तभी पत्रकार ने इस आशय के कुछ सटीक प्रश्न छोड़ दिए कि - ज़रा खुल के बताएं कि बात कैसे शुरू हुई ? कहाँ से शुरू हुई ? किस ने पहल करी ? किसका फ़ोन आया गया था ? आदि इत्यादि ....
और जनाब जो जवाब आया मुझे अब तक गुदगुदा रहा है .... आप भी आनंद लीजिये ....
जवाब था - मुझे कुछ नहीं मालूम - कब क्या हो गया कैसे हो गया - नहीं मालूम - मैंने कुछ किया या मुझसे कुछ अपने आप हो गया - नहीं मालूम - ये तो अब "मिस्ट्री" है - मेरे लिए भी ये बहुत बड़ी "मिस्ट्री" है - आदि इत्यादि ....
और ये कहते हुए दार्शनिकता वाले स्टाइल की भोंडी एक्टिंग की भरपूर कोशिश भी की जा रही थी .... जैसे मनोज कुमार से पूछा गया हो कि मानवता क्या होती है - और ....
मेरी प्रतिक्रिया >>>>
> जिन ने खुद क्या कर दिया - नहीं मालूम ....
> जिन को वो खुद क्या कर रहे हैं - नहीं मालूम ....
> जिन से खुद क्या हो गया - नहीं मालूम ....
> जिन से क्या करवा लिया गया - नहीं मालूम ....
> जिन से क्या करवाया जाना है - नहीं मालूम ....
> पर जिनको ये अच्छे से मालूम है कि अरविन्द केजरीवाल क्या गलत करते हैं - क्यूँ गलत करते हैं - कितना गलत करते हैं - कब गलत करते हैं - वो झूठ की फैक्ट्री कैसे चलाते हैं - फैक्ट्री कहाँ चलती है - कितने झूठ रोज़ बनाती है - आदि इत्यादि ....
मित्रों !!!! ऐसे लोगों को आम भाषा में मदहोश या टुन्न या बावला या पागल कहते हैं - हमारी मालवी भाषा में एबला या एबली या फिर बेंडा या बेंडी  भी कहते हैं ....
और राजनितिक भाषा में "शातिर" - कृपया सावधान रहिएगा !!!!

Saturday 17 January 2015

//// भाजपा की हताशा और बद्तमीजी की तो हद हो गयी .... ////

न्यूज़ -२४ पर अभी ख़त्म हुई ७.००-७.३० बहस में भाजपा प्रवक्ता सुधांशु मित्तल द्वारा ५-६ बार अपने फटे गले से चिल्ला चिल्ला कर एक निहायत ही बेहूदे और शर्मनाक तरीके से आप के सौम्य आशीष खेतान को " बद्तमीज़ इंसान" कहा .....
और आशीष खेतान ने प्रतिक्रिया में कहा - आप हमें बद्तमीज़ कहें या नक्सली या आराजक - हम हमेशा मुद्दे की ही बात करेंगे ....
और पूरी बहस में आशीष खेतान और वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा ने मुद्दों की बातें करते हुए सुधांशु मित्तल किरण बेदी और भाजपा की एक तरफ़ा वाट लगा दी ....
मेरी प्रतिक्रिया .... अब आप ही अंदाजा लगाएं - दिल्ली में कौन जीत रहा है ????

//// अबकी बार बेंडी सरकार ?? नहीं ई ई ई ई इं .... ////

किरण बेदी भाजपा में आ गयी हैं .... इसे "WILD CARD ENTRY" कहा जा रहा है ....
पर मुझे इससे आपत्ति है .... क्योंकि शब्दकोष में "WILD" का मतलब तो "जंगली" होता है .... और जो भक्त अभी तक पानी पी पी कर किरण बेदी को अपशब्द कहते आये थे उन्हें निश्चित ही इस नयी गाली से ठेंस पहुंचेगी ....
पर हाँ मैं भक्तों के लिए एक नया नारा ज़रूर दे सकता हूँ .... "अबकी बार बेंडी सरकार" ....
इस पर भक्त आपत्ति नहीं ले सकेंगे - क्योंकि "बेंडी" शब्द शब्दकोष में नहीं मिलेगा ....
और भक्त लोग कभी भी "बेंडी" का मतलब जान ना पाएंगे ....
पर "बेंडी" के मायने आप और हम तो अच्छे से जानते ही हैं - है ना !!!!
और शायद ये भी अच्छे से जानते हैं कि ना तो बेदी और ना ही "बेंडी" सरकार बनने जा रही है - क्योंकि WILD CARD ENTRY तो हमेशा से ही हारे हुए और बाहर निकाले जा चुके रिजेक्टेड प्रतिस्पर्धी की ही होती आई है ....
इसलिए अब आप शांत और प्रसन्न रहिये .... पर हाँ चौकन्ने भी .... इन "WILD" लोगों का क्या भरोसा ????

Friday 16 January 2015

//// लो झेलो बेदी को .... ////

आज किरण बेदी का भाजपा कार्यालय से लाइव भाषण देखा .... वो भी लम्बा चौड़ा घंटे भर का भाषण .... फुल डोज़ ....
लगा शायद ही कोई उनकी लम्बी चौड़ी बातें सुनने का इच्छुक था .... बार बार इधर उधर काना फूँसी हो रही थी - बेदी जी २-३ बार नाराज़ भी हो गयीं - एक बार ये बोलीं कि सब चुप हो जाएं वो डिस्टर्ब्ड हो रहीं हैं और उनकी एकाग्रता टूटती है - फिर बोलीं जिनको नहीं सुनना वो बाहर चले जाएँ ....
बीच बीच में - प्रभात झा - सतीश उपाध्याय - हर्षवर्धन - विजय गोयल - विजेंद्र गुप्ता - मिनाक्षी लेखी के चेहरे भी दिखाए जा रहे थे - पक गए थे बेचारे - हवाइयां उडी हुई थीं - उबासियां ले रहे थे ....
और मैंने उनके चेहरे पर पढ़ा कि - "ये तो गजब पकाऊ निकली यार" !!!!
और मेरा मानना है कि अब बीजेपी में उच्च कोटि के दो-दो फेंकू हो गए हैं ....
कूटो अपना माथा !!!!

//// खासमखास का एहसान तो चुकता हो रहा है - पर जनता के साथ विश्वासघात क्यों ? ////

जैसे जैसे समय बीत रहा है मोदी जी की पोल दिन-ब-दिन खुलती ही जा रही है ....
पर इसके बीच एक बात और फैलाई जा रही है कि मोदी जी एहसान फरामोश नहीं हैं .... शायद ये वैसी ही तारीफ है जैसी कि कोंग्रेसियों द्वारा भूतकाल में इंदिरा गांधी या सोनिया गांधी के लिए की जाती रही है !!
पर भक्त लोग इस तारीफ से खुश हो बावले हो जाएं उसके पहले मैं ये भी साफ़ कर दूँ कि अब तक जो सामने निकल कर आया है उसके अनुसार एहसान तो चुकता हो रहा है - पर कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों का - साधुओं और साध्वियों का - विहिप बजरंगदल का - आरएसएस का - बिकाऊ मीडिया का - रामदेव का - राम रहीम का - आदि इत्यादि का - जिनके लिए ये माना जाता है कि उन्होंने मोदी जी को चुनाव जीतने में मदद करी थी !!
अब ये सब लोग जिनका एहसान चुकता होते आप और हम महसूस कर रहे हैं - क्या वे अच्छे लोग हैं या बुरे लोग .... मनन और निर्णय आप को करना है !!
व्यक्तिगत रूप से तो मैं केवल इतना जानता हूँ कि भले ही मोदी जी जीत का श्रेय उनको ही देते हों जिनका कि एहसान उतारा जा रहा है - पर शायद थोड़ा सा श्रेय तो उस जनता को भी जाता ही होगा जिसने मोदी जी के नाम पर भाजपा को वोट देकर भाजपा को जिताया ....
तो फिर उस जनता का एहसान कब उतरेगा ????
मुझे लगता है शायद कभी नहीं - इस मामले में मुझे मोदी जी एहसान फरामोश ही दिख रहे हैं - और शायद देश का यही सबसे बड़ा दुर्भाग्य होने जा रहा है !!!!

Thursday 15 January 2015

//// भ्रष्टाचार के विरुद्ध 'जनआंदोलन' की हत्या के बाद मेरी उम्मीद 'अरविन्द केजरीवाल' क्यों ? ////

कोई समझे या ना समझे - मैं यह अच्छे से समझ चुका हूँ कि कांग्रेस और भाजपा ने मिल कर जनलोकपाल जनआंदोलन को कैसे और क्यों नेस्तनाबूद किया ....
मेरे आंकलन अनुसार बहुत ही सोची समझी रणनीति के तहत ये कार्य करने में इन दोनों पार्टियों ने दो फॉर्मूलों का सहारा लिया ....
पहला फार्मूला था - 'BUY TIME' ..... यानि कि जब सर-सर पानी आ गया था और जब कुछ न करते बन रहा था तो एन-केन-प्रकारेण यानि सही गलत किसी भी तरीके से झूठ सच बोल कर किसी भी तरह मुद्दे को टाला जाए - इसका मकसद था कि आंदोलनकारी लम्बे आंदोलन से थक हार जाएंगे और भ्रष्ट अपने मकसद में सफल हो सकेंगे ....
दूसरा फार्मूला था - 'DIVIDE AND RULE' .... यानि वो टेस्टेड फार्मूला जो अँगरेज़ हमारे विरुद्ध अपनाते आये थे - इसका मकसद था कि आंदोलनकारियों की एकता को तोड़ उसे मृतप्रायः बना दिया जाए और फिर एक बार भ्रष्टाचार का राज स्थापित किया जा सके ....
शायद दोनों पार्टियों के दोनों फॉर्मूले सटीक सफल हुए और दोनों भ्रष्ट पार्टियां अपने मकसद में लगभग सफल .... "लगभग" ....
जी हाँ "लगभग" सफल इसलिए कि भले ही जनलोकपाल को दफना दिया गया - जनआंदोलन असफल कर दिया गया - आंदोलन की टीम को छिन्न भिन्न कर दिया गया - स्वार्थी नेता और उद्योगपति फिर से लामबंद हुए - और सफल हुए - और सत्ता हासिल करी ..... लेकिन शायद भ्रष्टाचारियों की यह सारी सफलता 100% तक कभी भी नहीं पहुँच पाई - क्यों ?
शायद इसलिए कि उस आंदोलन की आत्मा ज़िंदा रह गयी - जी हां !! 'अरविन्द केजरीवाल' मरे नहीं हारे नहीं हतोत्साहित नहीं हुए - और वो आज भी अपने पथ पर अडिग चलते अकेले लोहा ले रहे हैं - अपना सुख-चैन त्याग - अपनी जान जोखिम में डाल - और सभी भ्रष्टाचारियों के लिए एक डर बने हुए हैं - और आज भी हमारी 'उम्मीद' को जगाये हुए हैं ....
और तो और उन्होंने अभी तक जो राजनीतिक कौशल्य का परिचय दिया है वो भी मुझे अतुल्य लगता है ....
शायद इसलिए आज मैं अपनी तुच्छ क्षमता अनुसार केवल इस 'उम्मीद' = 'अरविन्द केजरीवाल' का साथ दे रहा हूँ ....
शायद इसलिए मुझे उनका मफलर नहीं अखरता - उनकी बच्चों की कसम नहीं सालती - उनका धरना विचलित नहीं करता - उनका त्यागपत्र गलत नहीं लगता ....
और आज केजरीवाल के विरुद्ध किरण बेदी का सामने आना भी अच्छा नहीं लगा - और कल शाज़िया इल्मी का आना भी अच्छा नहीं लगेगा !!!!
बाकी आप सबकी अपनी अपनी सोच अपना अपना विवेक .... मेरे दिल की बात यहीं तक !!!!
धन्यवाद !!!!

//// बिजली का झटका .... ////

आज मुझे वर्षों पहले हमारे इलेक्ट्रिकल टेक्नोलॉजी के काबिल प्रोफेसर द्वारा बतायी गयी गूढ़ बात याद आ गयी ....
// ELECTRICITY  IS  A VERY GOOD SERVANT BUT A BAD MASTER //
अभिप्राय - बिजली का सदुपयोग करोगे तो वो आपके लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी - पर यदि इसका दुरपयोग किया या इससे छेड़खानी करी तो ऐसा झटका देगी कि - तौबा !!!!
इसलिए नासमझों को तो इससे हमेशा दूर रखने और रहने की सलाह ही दी जाती रही है ....
पर लगता है दिल्ली में भाजपा ने नासमझी वाली हरकत पटक दी ....
बिजली से खिलवाड़ कर डाला ....
तो झटका तो लगना ही था ..... और लगता है काफी ज़ोरदार लगा है .... है ना !!!!

Wednesday 14 January 2015

//// जो मोदी को पसंद नहीं वो ६४ का बुड्ढा .... पर ६४ के मोदी खुद जवान ???? ////

DRDO चीफ अविनाश चन्दर को बिना किसी उचित कारण के हटा दिया गया - जबकि उन्हें इसी सरकार द्वारा नवंबर में ही २ साल का एक्सटेंशन दिया गया था - और उन्हें हटाने की सूचना उन्हें मीडिया के द्वारा मिली .... उन्होंने ४२ साल तक देश की सेवा करते हुए बहुत प्रशंसनीय कार्य किए जिसमें अनेक मिसाइल्स का ससमय प्रक्षेपण आदि शामिल है ....
और अब कारण बताया जा रहा है कि क्योंकि वे ६४ साल के हो गए थे और मोदी जी इस संस्थान में जवान लोगों को चाहते हैं, और क्योंकि सरकार को ऐसा करने का अधिकार था तो सरकार ने कर दिया .... एक झटके में हटा दिया - चल हट अलग - 'आन्दे हवा वाले टशन इशटाइल' में !!!!
मेरे प्रश्न >>>>
यदि उन्हें हटाना था तो उन्हें नवंबर में उनके रिटायरमेंट के समय क्यूँ नहीं रिटायर होने दिया गया और उन्हें २ साल का एक्सटेंशन क्यों दिया ??
क्या इतने अच्छे काबिल श्रेष्ठ और वरिष्ठ बेदाग़ वैज्ञानिक को इस तरह से हटाना उपयुक्त है या शोभा देता है ??
क्या मोदी जी ने अपने लिए जो प्रमुख सचिव श्री नृपेन्द्र मिश्रा को ऐन-केन-प्रकारेन नियुक्त कर रखा हुआ है क्या वो ७० साल के बच्चे हैं ??
यदि ऐसे श्रेष्ठ वैज्ञानिक को केवल ६४ वर्ष का होने के कारण हटाया गया है - तो क्या स्वयं मोदी जी भी ६४ वर्ष के नहीं है ????
क्या मोदी जी भी आज कल में इस्तीफ़ा देने वाले हैं ???? यदि ऐसा है तो आप मुझे बधाई दे सकते हैं !!!!

//// ४ बच्चे - ५ बच्चे - और तो और अग्रिम आवंटन भी .... क्या ये कुत्ताई नहीं ?? ////

कोई कहता है हिन्दू महिलाओं ने ४ बच्चे पैदा करने चाहिए .....
उनसे बड़े वाले कह बैठे हिन्दू महिलाओं ने 5 बच्चे पैदा करने चाहिए .....
और तो और बच्चों का अग्रिम आवंटन भी कर दिया गया .... एक धर्म के नाम एक सीमा पर एक समाज को - और बचा हुआ घर टिकने को तैयार हो तो जाओ ऐश करो क्या याद रखोगे उसे खुद रख लेना .... वाह क्या दूरदर्शिता और उदारता का परिचय देने का भोंडा प्रयास है !!!!
 पर मुझे तो इसमें गंदगी वाहियातपन और कुत्ताई के अलावा कुछ भी नहीं दिखता ....
और वो इसलिए कि अभी मोहल्ले में एक कुतिया ने भी ५ पिल्लों को जनम दिया - तो एक असलम भाई ने बुक करा दिया एक गौरीशंकर जी ने एक मेरे पडोसी गब्बरसिंह ने अपने फार्महाउस के लिए और एक कुतिया के मालिक के दोस्त ने - और सबने कुतिया के मालिक को छूट दे दी है कि एक वो खुद और कुतिया के पास ही रहने दे ....
उपरोक्त संदर्ह में मैं विवेचना निहित कुछ प्रश्न भी समक्ष में रखना चाहूँगा >>>>
> मान लें यदि आजम खान टाइप मुस्लिम महिलाओं को ६-६ बच्चे पैदा करने का फरमान या सुझाव पटक मारे तो क्या ये बेहूदा लोग कॉम्पीटीशन में उत्तर कर हिन्दू महिलाओं को ८-१० बच्चे पैदा करने का फरमान जारी कर देंगे .... वैसा ही कॉम्पीटीशन जैसा कि अभी मोदी जी ने बिजली कंपनियों के बीच दिल्ली बिजली समस्या के निदान हेतु सुझाया है ????
> कुतिया सुअरनी बिना किसी की मांग अनुसार या इज़ाज़त या समझाइश लिए सदियों से जो ५-१० बच्चे जनती रही हैं - वो कहाँ जाते हैं ? अभी तक दुनिया कुत्तों और सूअरों से भर क्यूँ नहीं गयी - अभी भी कुत्ते सूअर लिमिटेड क्वांटिटी में ही क्यूँ नज़र आते हैं ????
> मुर्गी भी क्या रोज़ अंडे देने के पहले साधू संतों मौलवियों और मंदिर मस्जिद की इज़ाज़त लेती है - कि प्लीज ज़रा अनकम्फर्टेबल लग रहा है - एक अंडा देने दो महाराज ??
तो मित्रों मेरे इस कदर बकवास प्रतीत होने वाले रोषपूर्ण लेख का बहुमूल्य सार यही निकलता है कि - जो खुद बच्चा तो छोड़ एक अंडा भी ना पैदा कर सके उनके द्वारा ऐसी बकवास बातों का जम कर विरोध करें - गुस्सा करें रोष ज़ाहिर करें - और सभ्य समाज में सब को यथायोग्य इज़्ज़त देते हुए इज़्ज़त के साथ रहने का प्रमाण देवें !!!! धन्यवाद !!!!

Tuesday 13 January 2015

//// इतिहास गवाह है ?? ....तो ठीक है आज तुलसीदास जी हाजिर हों .... ////

"इतिहास गवाह है - इतिहास गवाह है" .... सुन सुन कर मेरे तो कान पक गए - जिसको देखो अपना केस खुद लड़ रहा है - खुद मुजरिम होते हुए खुद जज बना बैठा है - और खुद पैरवी भी कर लेता है - और जब देखो गवाही बंधक बनाये इतिहास की देने को तैयार ....
तो आज मैंने भी सोचा कि मैं मेरे मन की बात को स्थापित करने हेतु इतिहास की गवाही का सहारा लूँ >>>>
इतिहास गवाह है कि तुलसीदास जी ने कहा था कि ....
// शूद्र गंवार ढोल पशु नारी - सकल ताड़ना के अधिकारी //
जिसका १/५ आंशिक पुख्ता मतलब ये है कि - "नारी ताडन की अधिकारी होती है" - यानी वो मारा-कूटी डाँट-डपट और प्रतारणा के ही लायक होती है ....
यानी ये तो मामला राष्ट्रीय महिला आयोग से संबंधित हो गया भाई .... !!!!
और मैं दावे से कहता हूँ कि यदि आज कोई भी खाप छाप नेता यदि ये सार्वजनिक रूप से कह दे कि - नारी का क्या - नारी तो होती ही ऐसी वैसी है - करो इसे प्रताड़ित .... तो जनाब मान लीजिये कि "ताड़न" "वाडन" तो छोड़ वो मिनटों में  'तड़क-तड़ाक-तड़ित' हुआ समझो - बिलकुल 'एंटीफटाक' हो विलुप्त हुआ ही समझो - जैसे ईश निंदा के इलज़ाम में हज्जारों हिमाकती होते आये हैं - बस उसका अस्तित्व बचेगा तो केवल इतिहास के पन्नों में - जहाँ लिखा जाएगा कि फलां नेता ने नारी के लिए ये ये कहा था और उसे नेस्तनाबूद कर दिया गया था - और वो आज फिर हाज़िर है गवाही के लिए - यानी ससुरी एक गवाही और तैयार ....!!!!
मित्रों मेरा आशय न तो तुलसीदास जी का उपहास करने का है और ना ही इतिहास को झुठलाने का - बस मेरा मकसद तो इतना भर है कि जो इतिहास हुआ उसे इतिहास के रूप में ही लिया जाय - उसे वर्तमान में बदनियती और कम ओछी अकल के तड़के के साथ पेश ना किया जाय .... पैगम्बर क्या कह गए बुद्ध क्या सुन गए महावीर क्या समझ गए - किसके पिछवाड़े किसने आग लगाई किसके किसने कहाँ कीलें ठोंकी किस पर किसने कितनी बार कचरा फेंका - किसके कितनी बीवियां थीं किसके कितने पति थे किसके कितने बच्चे थे - किसने किसपे आक्रमण किया था क्यूँ किया थे क्या हुआ था - गांधी स्टालिन नेहरू हेडगेवार हिटलर वाजपेयी ने क्या किया क्या नहीं किया क्यों नहीं किया आदि पर हम कब तक कुमंथन कर इतराते लड़ते बघारते रहेंगे - और चार्ली एब्दो पर गोलियां बरसाते रहेंगे ????
मित्रों मेरा निवेदन है कि कुछ समय के लिए उस बदमाश गवाह इतिहास को भूल जाएँ और "विकास" को कोर्ट के कटघरे में खड़ा कर वर्तमान के अपराधियों को पहचानें .... कृपया विचार करें कि ये रामज़ादे हरामज़ादे कौन हैं - ये लव जेहाद के जनक कौन हैं - बिन बच्चे ४-४ बच्चे पैदा करने की बात कौन पटक रहा है - अपने घर में वापसी के नाम पर आपको कौन घुसेड़ रहा है - कौन अपने पद का दुरपयोग कर रहा है और अपना और अपने पद का स्तर गिरा रहा है - कौन आपको बेवकूफ बना रहा है - कौन अपने वादों को भुला रहा है - कौन नए नए वादे फेंक रहा है ????
और यदि आपने ऐसा नहीं किया तो याद रखें - एक और जुमला इतिहास के नाम - जी हाँ इतिहास गवाही दे न दे पर - "ये निगोड़ा इतिहास आपको माफ़ नहीं करेगा" - आप समझ गए ना !!!! धन्यवाद !!!!

Monday 12 January 2015

//// अरविन्द केजरीवाल दिल्ली का १ वर्ष बर्बाद कर गए ? और बाकी सब जवाबदार उल्लुओं की तरह बैठे रहे ?? ////

कल की दिल्ली की विशाल खर्चीले संसाधन पोषित रिकॉर्ड नेताओं की संख्या वाली फ्लॉप भाजपा रैली में मोदी जी ने अरविन्द केजरीवाल की ओर इशारा और निशाना साधते हुए कहा था - "दिल्ली का एक साल बर्बाद हो गया, किसने किया? जिन्होंने दिल्ली को अस्थिर किया, उनको सजा दीजिए।"
मेरी विवेचना ....
मैं दिल्ली की बात पर बाद में आऊंगा पर पहले ज़रा नज़र डालते हैं जम्मू-कश्मीर पर ....
२३ दिसंबर को चुनाव नतीजे आ गए थे - पर कई दिनों की मशक्कत के बाद भी वहां भाजपा सरकार नहीं बना पायी - यहाँ तक की NC ने भी समर्थन की पेशकश की थी पर तब भी बीजेपी ने सरकार नहीं बनायी - पर पीडीपी से बात जारी .... तो अब क्या होगा ? अब तो जम्मू-कश्मीर का समय बर्बाद होगा कि नहीं ? जम्मू-कश्मीर अस्थिर हो गया कि नहीं ?? तो क्या अब उसके लिए भी अरविन्द केजरीवाल ही जिम्मेदार ????
जी हाँ चौंकिए मत - जम्मू-कश्मीर का जो भी समय बर्बाद हो रहा है उसके लिए अरविन्द केजरीवाल ही जिम्मेदार हैं - क्योंकि अभी दिल्ली के चुनाव जो होने वाले हैं और सत्ता की लोलुप सिद्दांतहीन बीजेपी यदि पीडीपी यानि बाप बेटी वाली मुस्लिम बहुल पार्टी से हाथ मिला लेती है तो उसे कई तीखे प्रश्नों का सामना करने में असहज होना पड़ता .... और क्योंकि दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल मोदी की छाती पर दाल दल रहे हैं इसलिए बीजेपी किसी भी प्रकार का चुनावी नुकसान का जोखिम नहीं ले सकती - पर मेरा दावा है कि दिल्ली चुनाव के तुरंत बाद बीजेपी और पीडीपी जम्मू-कश्मीर में सरकार बना लेंगे !!!!
और अब मैं आता हूँ दिल्ली की १ वर्ष की बर्बादी वाली बात पर ....
मित्रों आज एक बात तो तय हो गयी कि दिल्ली का १ साल बर्बाद हुआ - और इसलिए इस बर्बादी के जिम्मेदार को गाली तो पड़नी ही चाहिए ....
पर मेरी निजी राय में १ और बात तय हो गयी कि मोदी जी निहायत बकवास पटकने वाले इंसान हैं क्योंकि वो इसके लिए भी अरविन्द केजरीवाल को ही जिम्मेदार ठहराने की अनैतिक कोशिश और हिमाकत करते दिख रहे हैं - केवल इस अतिविश्वास आधार और सत्य पर कि उनके बेअकल भक्त इस बात पर विश्वास कर ही लेंगे और यही मान भी लेंगे कि दिल्ली के १ साल की बर्बादी के लिए अरविन्द केजरीवाल ही तो जिम्मेदार हैं - क्योंकि उन्होंने फरवरी २०१४ में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा जो दे दिया था .... है ना !!!!
पर आज मैं उन बेअकल भक्तों को जो मोदी जी की बात का समर्थन करते हों पूछना चाहता हूँ कि क्या इस्तीफ़ा देने के बाद केजरीवाल किसी भी संवैधानिक हैसियत में थे कि वो दिल्ली के संबंध में कोई भी हस्तक्षेप कर सकते थे ? क्या LG और केंद्र सरकार और अन्य संवैधानिक संस्थाएं और व्यवस्थाएं इतनी पंगु हो गयी थीं कि एक अदना सा पद विहीन आम आदमी अरविन्द केजरीवाल दिल्ली का १ वर्ष बर्बाद कर गया और वे सब उल्लुओं की तरह बैठे बैठे जनता के पैसे से ऐशो आराम फरमाते रहे और बड़े बड़े सरकारी भवनों में बैठे खाते हगते रहे ????
क्या ये आज़ाद हिन्दुस्तान में पहला इस्तीफ़ा था ? और क्या पूर्व के इस्तीफ़ा प्रकरणों में संवैधानिक व्यवस्थाएं ऐसे ही चरमरा गयी थीं जैसे दिल्ली में ????
धिक्कार है धिक्कार - ऐसे आरोपों और बयानों पर और ऐसी अकल पर और ऐसे समर्थन पर !!!!
मेरी निजी राय में तो दिल्ली का १ वर्ष बर्बाद करने के मुजरिम केंद्र सरकार में सत्तासीन कांग्रेस और भाजपा ही हैं और जनता ने इन्हे ही सबक सिखाना होगा - अन्यथा .... अन्यथा जो होगा सो होगा .... वैसे भी इस देश की राजनीति में अब तक सब कहाँ अच्छा ही होता आया है .... कुछ बर्बादी और सही !!!!

Sunday 11 January 2015

//// मोदी जी ने स्वीकारा कि वो HYPE करते हैं - यानी फांकते हैं .... ////

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कल मोदी जी ने कहा था कि - क्या आपने ऐसा कोई नेता देखा है जो अपने आपको "एनार्किस्ट" कहता हो ? उनका इशारा और निशाना अरविन्द केजरीवाल की तरफ था .... और आगे हलकट पटकी थी कि ऐसे व्यक्ति को नक्सलियों के पास जाना चाहिए ..... दिल्ली में उनका कोई स्थान नहीं - दिल्ली में सभ्य समाज रहता है ....
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केवल २४ घंटे बाद आज मुझे भी सटीक प्रतिक्रिया देने का मौका मिला है - मुलाहिज़ा फरमाएं >>>>
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क्या आपने ऐसा कोई नेता देखा है जो स्वयं कहे कि वो हर बात HYPE करता है ? मेरा इशारा और निशाना मोदी जी की तरफ है जिन्होंने अभी अभी अहमदाबाद की वाइब्रैंट गुजरात के शुभारंभ के उपलक्ष्य में अपने संबोधन में कही है ....
यानी आज मोदी जी ने स्वयं स्वीकार कर लिया है कि वो HYPE करते हैं - यानी फांकते हैं - यानी हर चीज़ को बढ़ा चढ़ा कर पेश करते हैं .... और इसलिए मेरा भी सुझाव है कि मोदी जी को किसी ऐड एजेंसी में नौकरी करनी चाहिए - सरकार में उनका कोई स्थान नहीं - सरकार में काम करने वालों की ज़रुरत है - फांकने वालों की नहीं ....
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//// भगवान द्वारा "सीमा-उल्लंघन" को चुनौती कौन देगा ? ////

आजकल कई जगह से ये आवाज़ उठ रही है और मेरे कुछ काबिल दोस्त भी बहुत शालीनता से और अपनी सीमा में रहते इस आशय की बात कह रहे हैं कि - फ्रांस में जो कुछ हुआ वह दुखद तो था ही पर ..... चार्ली एब्दो मैगज़ीन के कार्टूनिस्ट या संपादक "सीमा" पार कर गए थे .... उन्होंने शायद उसका मज़ाक उड़ाया था जो हमारे मत में सबसे ऊपर है - आदि !!!!
मेरी विवेचना ....
जो उपरोक्त "सीमा उल्लंघन" की बात कर रहे हैं - शायद वो हमेशा से कहा और माना जाता रहा यह जुमला भी मानेंगे कि - "आखिर हर चीज़ की एक सीमा होती है" ....
और यदि मैं भी ये मान लूँ कि उपरोक्त बात सत्य है तो फिर तो यह भी प्रतिपादित हो जाता है कि - इस दुनिया की भी सीमा है - इस ब्रह्माण्ड की भी सीमा है - इस सृष्टि कि भी सीमा है - और इसलिए इस सृष्टि बनाने वाले की भी तो सीमा होगी ही .... और यदि सीमा है तो सीमा उल्लंघन भी संभव हुआ ....
और मेरे हिसाब से तो वो ऊपरवाला भी अपनी सीमा का उल्लंघन करता ही है - जैसे बाढ़ भूकम्प में तबाही आप के और मेरे बस में कहाँ ? और विनाश में उसे अच्छे बुरे का ज्ञान संज्ञान भी कहाँ ??
तो मान लीजिये कि एक अदना सा कार्टूनिस्ट उस ऊपरवाले को धिक्कारता है या उससे प्रश्न पूछता है कि तूने अपनी सीमा का उल्लंघन क्यूँ किया ? तो इसे सीमा उल्लंघन कैसे माना जा सकता है ??
क्या शैलेन्द्र के बोल - "दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समायी - काहे को दुनिया बनायी" भी सीमा उल्लंघन माना जाएगा ???? क्या धार्मिक रूढ़ियों को आइना बताना भी सीमा उल्लंघन माना जाएगा ?? क्या राम मोहन राय या मदन मोहन मालवीय या महत्मा फुले या दाभोलकर जैसे लोगों को भी गलत ठहराया जाएगा ????
नहीं कदापि नहीं - बल्कि अब तो मैं ये विश्वास से कह सकता हूँ कि जिस व्यक्ति ने अपनी अभिव्यक्ति को किसी भी सीमा में संकुचित किये बिना निःस्वार्थ एक सर्वमान्य मर्यादित व्यस्वस्था या प्रथा अनुसार प्रदर्शित कर दिया वो ही धन्य और सच्चा - बाकी हम जैसे डरते डराते सकुचाते और ओढ़ी हुई या थोपी गयी मर्यादाओं का ध्यान रखते रखाते क्या खाक़ अभिव्यक्त करेंगे ????
अतः अपने स्वार्थ या सनक या स्वाभाविक बुद्धि या तो फिर तार्किक बुद्धि अनुसार ही संकुचित सीमांकन करने वालों से विनम्र विनती - कृपया पुनर्विचार ज़रूर करें !!!!
और तथाकथित उपरोक्त "सीमा" पार करने वाले चार्ली एब्दो मैगज़ीन के निर्भीक दिवंगत कार्टूनिस्ट और संपादकों को मेरी श्रद्धांजलि और सलाम स्वरुप मेरे दिल दिमाग से लिखा ये लेख सादर समर्पित ....

Saturday 10 January 2015

//// वाह भाजपा की दिल्ली रैली में अरविन्द केजरीवाल तो छा गए .... ////

आज मोदी जी को केजरीवाल का साल भर पहले दिया "एनार्किस्ट" वाला बयान याद आ गया .... जबकि लेटेस्ट में भाजपाइयों के एक से बढ़कर एक बयान याद नहीं आये .... यहां तक कि मोदी मोहन भागवत के महान वचनों तक को भूल गए ....
और तो और आज अमित शाह ने भी दिल्ली रैली में केजरीवाल पर ही तंज़ कसते हुए कहा कि - जो लोग मेट्रो से आने जाने का नाटक करते थे क्या चुनाव बाद वो मेट्रो में कभी दिखे ?
प्रतिक्रिया में नमूने के रूप में कुछ प्रश्न >>>>
जो भाजपाई टीवी पर झाड़ू लगाते दिखे थे क्या वो कभी किसी को कहीं भी पुनः झाड़ू लगाते दिखे ??
क्या दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सतीश उपाध्याय खुद का फेंका कचरा बटोरते नज़र आए ??
बिना हेलमेट स्कूटर चलाते संघ कार्यालय में घुसते गडकरी भी क्या तब से स्कूटर का ही कचूमर निकाल रहे हैं ??
और जिन भाजपाइयों की औकात पैदल चलने की भी नहीं क्या वो चुनाव बाद फ्लाइट से नीचे आवागमन करते दिखे ??
जो भाजपाई ४ बच्चे पैदा करने की बात कर रहे हैं क्या उनके रामज़ादे बच्चे भी उनकी तरह हमेशा फ्लाइट से ही आवागमन करेंगे या मौका पड़ने पर मेट्रो का इस्तेमाल भी कर लेंगे ??
और कुछ अंतिम प्रश्न ....
आज दिल्ली रैली में सारे भाजपाई और मोदी जी "मोदी उवाच" के अनुरूप अरविन्द केजरीवाल की आलोचना कर रहे थे या उन पर आरोप लगा रहे थे ????
और ये मोदी जी इतनी लम्बी लम्बी बातें और उससे भी लम्बी लम्बी साँसे क्यूँ छोड़ रहे थे - लगता है केजरीवाल ने ८-१० महीनें से दौड़ा दौड़ा कर ५६ इंची सीने का दम फुला दिया है !!!!
छा गए केजरीवाल छा गए - आज की भाजपा रैली जिसमे प्रधानमंत्री और ३ मुख्यमंत्री और सैंकड़ों सांसद थे - अकेले केजरीवाल के नाम !!!!

//// चाय बनाने वाले को देश चलाने का काम देकर गलती हो गई .... ////

मोदी जी ने अभी-अभी दिल्ली रैली में कहा कि जैसा व्यक्ति हो उसे वैसा ही काम देना चाहिए - मतलब "जाको काम वाही को साजे" वाली बात ....
मेरी त्वरित प्रतिक्रिया ....
सही कहा - चाय बेचने वाले को प्रधानमंत्री का काम देकर शायद देश ने गलती कर दी ....

Friday 9 January 2015

//// अब करीना कपूर ? अरे शर्म करो बस करो - अपनी बताओ "विकास" पुत्तर कब ? ////

मुझे लगता है 'मौनदी जी' ने अब सब सुनते हुए भी मौन रहते कुछ ना सुनने की बाजीगरी का परिचय देना शुरू कर दिया है ....
'मौनदी जी' के पगले संगी साथी लगातार कैसी कैसी बेवकूफी पटक रहे हैं - जैसे लेटेस्ट में "करीना कपूर का लव जेहाद" ....और मैं ऐसा मानता हूँ कि 'मौनदी जी' को साफ़ हो ही गया होगा कि जिन लोगों का वे नेतृत्व करते हैं उन्होंने शर्म बेच खाई है - वे नंगाइयत पर उत्तर आये हैं - और उनके क्रियाकलाप आपत्तिजनक और शर्मनाक हैं ....
और चूँकि निकट पूर्व में पूरे विपक्ष ने 'मौनदी जी' को संसद में आकर अपनी बात करने हेतु निवेदन या अपेक्षा या मांग की थी और 'मौनदी जी' एक शब्द बोलने के लिए भी तैयार नहीं हुए और यहां तक कि आज भी 'मौनदी जी' इस पूरे मामले में घुन्नी चुप्पी साधे हैं - इसलिए अब तो मेरी निजी राय में मुझे 'मौनदी जी' ही असली मुजरिम लगते हैं !!!!
इसलिए आज मैं 'मौनदी जी' को चुनौती देना चाहता हूँ कि बार-बार पूछे गए सैंकड़ों सवालों में से अब कम से कम सैंपल के आधार पर अपने छर्रों से एक सवाल का जवाब लिखित में दिलवा दें कि -
// करीना कपूर और शाहनवाज़ हुसैन के दोनों मामले 'लव-जेहाद' के परिप्रेक्ष्य में एक समान हैं या नहीं - जबकि दोनों मामलों में एक मुस्लिम पुरुष की शादी हिन्दू महिला के साथ राजी ख़ुशी से हुई ? //
मुझे मालूम है कि सत्य को पीठ दिखाते ये भगोड़े इन सवालों का जवाब नहीं देंगे क्योंकि इन मक्कारों के पास ऐसे सैकड़ों प्रश्नों के जवाब हैं ही नहीं ....
इसलिए इनके लिए तो मैं इनकी ही भाषा में एक सुझाव देता चलूँ तो ही बेहतर होगा ....
'मौनदी जी' का हनीमून पीरियड खत्म हो चुका है - साक्षी महाराज ने ४ बच्चे करने की बात कही है - तो अब 'मौनदी जी' को इधर उधर शानपत पटकने के बजाय अपने काम पर ध्यान देना चाहिए और "विकास" पुत्तर के पैदा होने की सूचना देनी चाहिए - यदि दम खम है तो .... !!!!

\\\\ साम्प्रदायिकता कट्टरता आतंकवाद कायरता से उद्वेलित .... \\\\

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 बड़े नादान हो पर मासूम से लग रहे हो !
 ये आग बुझती क्यों नहीं ये पूछ रहे हो ?
 ज़रा गौर से देखो ये लट्ठों का पीठा है  !!
 क्यों उसे जानते नहीं जो हवा दे रहा है ??
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"ब्रह्म प्रकाश दुआ" ०९-०१-१५

Thursday 8 January 2015

//// मेरा भी "निजी बयान" - भाजपा दोगली .... ////

भाजपा की दोगलाई फिर मेरे सामने है .... जिस विषयक मेरा १००% टंच "निजी बयान" आप सबकी सेवा में प्रस्तुत है .....
असादुद्दीन ओवैसी का "सभी मुसलमान पैदा होते हैं" वाला बयान और साक्षी महाराज का "हिन्दू महिलाओं को चार बच्चे पैदा करने चाहिए" वाला बयान दोनों लगभग साथ साथ ही आए ....
दोनों महानुभाव सांसद हैं - और दोनों ही सांसदों द्वारा ये बयान जनसभा के दौरान दिए गए .....
और दोनों ही बयानों के मद्देनज़र "विकास" को भुला और सभी काम की बातों को दरकिनार कर १-२ रोज़ से गरमा-गरम बहस जारी है ....
पर बहस में साक्षी महाराज स्वयं कहीं नज़र नहीं आये - बल्कि भाजपा के प्रवक्ता आए और आज सुबह के अखबारों के अनुसार भाजपा ने साक्षी महाराज के बयान को उनका "निजी बयान" घोषित कर किनारा कर लिया .... यानि साक्षी महाराज के बयान का भाजपा ने अपनी सुविधानुसार परंपरागत तरीके से एवं आधिकारिक एवं औपचारिक रूप से पटाक्षेप कर दिया .... और भाजपा भी चुप साक्षी महाराज भी चुप मोदी भी चुप शाह भी चुप संघ भी चुप साधु भी चुप साध्वी भी चुप भक्त भी चुप - यानी अधिकाँश लोग चुप !!!!
पर इसके उलट ओवैसी स्वयं लगभग सभी बहस में स्वयं उपस्थित हो अपनीं बात को रखते समझाते उससे बचते बचाते अपने तर्क कुतर्क देते और सबसे लोहा लेते दिखे .... और बहस के दौरान लगभग दसियों बार उन्होंने ये कहा कि उन्होंने जो भी कहा वह उनका निजी बयान था व्यकिगत विश्वास था और है और वे कदापि इसे किसी पर थोपना नहीं चाहते और यहाँ तक कहा कि आप चाहें तो मेरी बात से असहमत हो सकते हैं .... पर जनाब सभी एंकर और बहस में भाग ले रहे अन्य लोग ओवैसी पर पिले पड़े रहे - यहाँ तक कि कुछ चीखने चिल्लाने वाले अंग्रेज़दाँ एंकर तो यहाँ तक कह दिए कि ओवैसी का बयान उनके सभी समर्थकों और उनकी पूरी जमात का अपमान है - पर ओवैसी कभी मुस्कुराते कभी ललकारते कभी गुस्सा करते सभी को बखूबी पुरज़ोर जवाब देते नज़र आए ....
उपरोक्त के परिप्रेक्ष्य में अब मेरा "निजी बयान" >>>>
जब साक्षी जी और ओवैसी जी को निजी बयान देने की छूट है तो मुझे भी है - और मेरा निजी बयान ये है कि - या तो दोनों के बयानों को निजी मान आगे बढ़ा जाए या दोनों के बयानों को निजी ना मानते हुए दोनों को ख़ारिज किया जाए .... पर भाजपा की दोगलाई को अस्वीकार किया जाए !!!!
किसी को मेरे बयान से आपत्ति हो तो "टिल्लेलिल्ले" !! कुढ़ते सड़ते रहो क्योंकि मेरा बयान तो "निजी बयान" ही है और रहेगा .... है ना !!!!

Wednesday 7 January 2015

//// सोचना ही होगा कि इस डरावनी अंतहीन कहानी का अंत कैसे हो .... ////

पेरिस में फिर एक आतंकवादी हमला ....
कुछ दिन पहले ही पेशावर में आतंकवादी हमला ....
निश्चित ही ये इस्लामिक कट्टरता का प्रतीक प्रतीत होते हैं और इसे इस्लामिक आतंकवाद की ही संज्ञा दी जा सकती है ....
पर बहुत सोच विचार के लिखना चाहता हूँ की क्या ज्यादा उचित नहीं होगा कि हम इसे धार्मिक कट्टरता मानते हुए इसे धार्मिक आतंकवाद की संज्ञा देवें .... क्योंकि जैसा कि सभी सभ्य सहिष्णु और समझदार यही तो बोलते हैं कि कट्टरवाद किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं हो सकता और ना ही आतंकवाद का कोई धर्म होता है ....
लेकिन इसके साथ ही बहुत सोच विचार के मैं ये भी लिखना चाहूंगा की आज हिन्दुओं या अन्य धर्मों के अनुयायियों से कहीं ज्यादा जवाबदारी सभी मुसलमान भाइयों और बहनों की बनती है कि वो सभी इस घटना की पुरज़ोर भर्त्सना और विरोध करें ....
और हम सभी ये सोचें कि इस डरावनी अंतहीन कहानी का अंत कैसे हो ??
क्या हमें ये नहीं सोचना चाहिए कि धर्म जिसकी स्थापना अच्छे उद्देश्यों के लिए ही की गयी होगी और जिसके कल तक अच्छे परिणाम मिलते भी रहे होंगे शायद अब उसी धर्म का दुरपयोग हो रहा है और वही धर्म अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है और इसके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं ????
इसलिए मेरा मानना है कि सभी बातों पर समग्र समाज को पुनरावलोकन करना ही होगा - और शायद हर प्रकार की कट्टरता का विरोध भी !!!!

//// तेल देखा तेल की धार देख ली - मनमोहन अच्छे - मोदी फ़ड़तूस ////

मित्रों आज मैं मोदी जी की ही बात को मानते हुए लोकतंत्र के हित में मोदी जी की स्वच्छ तीखी 'आलोचना' करना चाहता हूँ - कृपया इसे 'आरोप' ना समझें ....
विषय है तेल की कीमतें >>>>
> कल अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम साढ़े पांच साल के निचले स्तर पर आ गए - यानि रूपए ५३.५० प्रति बैरल जो मई २००९ के समतुल्य हो गए !!!!
> पर जनाब मई २००९ में पेट्रोल की कीमत थी रुपये ४०.६२ प्रति लीटर - लेकिन आज ये कीमत है ६५.२३ प्रति लीटर .... यानि रुपये २४.६१ प्रति लीटर अधिक ....
> इसी तरह मई २००९ में डीज़ल की कीमत थी रुपये ३०.८६ प्रति लीटर - लेकिन आज ये कीमत है ५५.७७ प्रति लीटर .... यानि रुपये २४.९१ प्रति लीटर अधिक !!!!
क्या ये मेरे साथ लूट नहीं है ???? पूरे २४-२५ रुपये प्रति लीटर कि खुल्लम खुल्ला लूट ????
क्या ये आपके साथ भी लूट नहीं है ?? क्या ये हिन्दुओं भक्तों भाजपा कार्यकर्ताओं आदि सभी के साथ भी लूट नहीं है ????
और जनाब आलम देखें कि मोदी जी "अच्छे दिन - अच्छे दिन" की रट लगाए हुए राजनैतिक आक्रामकता का भोंडा प्रदर्शन करते रहे हैं - जबकि आदरणीय मनमोहन सिंह जी ने कभी भी शालीनता का परित्याग नहीं किया था ....
इसलिए मोदीजी कृपया अपनी आलोचना सुनें - कि आप से तो लाख दर्जे अच्छे थे मनमोहन सिंह जी लेकिन आप तो फ़ड़तूस निकले .... इसलिए अब बेहतर होगा कि मनमोहन सिंह जी के व्यक्तित्व और कार्यप्रणाली की कुछ अच्छाइयों को पहचानें और उनका अनुसरण करें ....
और हाँ राष्ट्रहित में आपकी एक और आलोचना ....
मोदी जी बेहतर होता यदि आप नए 'नीति आयोग' में स्मृति ईरानी या गडकरी की जगह काबिल मनमोहन सिंह जैसे किसी व्यक्ति को स्थान देते .... पर लगता है ना तो आप स्वयं कुछ करने में सक्षम सिद्ध हो रहे हैं ना ही सही व्यक्तियों का चयन करने में .... तो ज़रा ठंडे दिमाग से सोचिये - गिरेबान में झांकिए - केवल रामज़ादों के बारे में सोचना बंद कीजिये और अपने दत्तक पुत्र "विकास" के बारे में कुछ सोचिये और कुछ तो करिये ....
या फिर इस्तीफ़ा दे पहुंचे साबरमती किनारे कुछ साल मंथन करने के लिए - या नर्मदा किनारे पटेल की मूर्ती बनाने के लिए - या गंगा किनारे घाट की सफाई करने के लिए - या कुछ और सार्थक आपकी योग्यता अनुसार !!!! धन्यवाद !!!!

Tuesday 6 January 2015

//// ये सरकार और तेल .... ////

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें फिर गिरीं .... गिरते ही जा रही हैं .... कुछ उछाल उतार के बाद अंततः पिछले साढ़े पांच साल के सबसे निचले स्तर पर ....
और इधर राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार की साख भी गिरी .... गिरते ही जा रही है ....कुछ उछाल उतार के बाद अंततः पिछले साढ़े पांच साल के सबसे निचले स्तर पर ....
लगता है केंद्र सरकार और तेल का कुछ तो संबंध है .... ऐसा अर्थशास्त्री भी मानते हैं ....
पर फिर भी लगता है इस बेशर्म सरकार की तो फिर भी चांदी ही है - क्योंकि सरकार के लिए साख गयी है तेल लेने ....
लूट खसोट जारी है - तेल के दाम दुखते मन और कंजूसी से इतने ही घटाते हैं जैसे कोई लाचारी है - और महंगाई कम होना दूर सब्जियों तक के दाम बढ़ना फिर भी जारी है ....
और असल में तेल तो जनता का ही निकल रहा है ....
इसलिए मित्रों मुझे लगता है की हमें इस सरकार को ही भेजना पड़ेगा - तेल लेने !!!!

//// सत्ता का 'नशा' और निर्लज्जता का 'हेलमेट' ////

ये बात तो सब मानते हैं कि नशा बुरी चीज़ है - इसमें कई परिवार उजड़ गए - कई ज़िंदगियाँ ख़त्म हो गईं - और नशा छोड़ देने से कई ज़िंदगियाँ बच सकती हैं ....
और ये बात भी सब मानते हैं कि हेलमेट पहनना बहुत जरूरी है - सड़क दुर्घटना में कई मौतें हो चुकीं हैं - और हेलमेट पहनने से कई ज़िंदगियाँ बच सकती हैं ....
पर जनाब इन दोनों समान सी जनहित की बातों के प्रति सरकार का दृष्टिकोण और रवैय्या कितना भिन्न है और क्यों है - ज़रा गौर फरमाइएगा ....
सरकार द्वारा जनहित का हवाला देते हुए हेलमेट पहनने को नियम में प्रावधान कर अनिवार्य बना दिया गया है .... बावजूद इसके कि अधिकाँश लोगों को इसे पहनना और इसको सम्हालते फिरना असुविधाजनक लगता है - और बावजूद नियम के लोग इसे सहर्ष स्वीकार्य नहीं कर सके हैं - पर सरकार है कि नियम पेले पड़ी है - और यदि हेलमेट नहीं पहना तो चालान और जुर्माना .... यानि सीधे सीधे नंबर १ व २ की सरकारी आय - और हेलमेट बनाने वाली कंपनियों से सांठ-गांठ से फायदे सो अलग !!!!
पर इसी सरकार द्वारा नशा करने को नियम में प्रावधान कर जनहित में वर्जित नहीं किया गया है  .... नशे के लिए तो बस मोदी जी प्रवचन कर चुप हो गए - और भी सब नशे को कोसते रहते हैं - और आजकल तो पंजाब में अकालीदल  और भाजपा के बीच इस नशे पर राजनीती भी गज़ब हो रही है - पर इन्होने करना कुछ नहीं है - कारण सभी सरकारें इससे होने वाली कमाई और अन्य अवैधानिक लाभ का मोह त्याग नहीं पायी हैं .... यानी घड़ियाली आंसू !!!!
तो मित्रों उपरोक्त बात से मैं यह सिद्ध करना चाहता हूँ कि >>>>
जनहित गया भाड़ में - सरकार और सरकार में बैठे सत्ताधीशों की सुविधा और फायदे ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं - सरकार को आपकी भलाई या ज़िन्दगी की कोई परवाह नहीं है - ये सरकार नशे को बंद करने के लिए कत्तई भी संजीदा नहीं है - और मोदी जी केवल बातें करते हैं करते कुछ नहीं हैं - और ना ही कुछ करने वाले हैं  ....
और मुझे लगता है कि सरकार स्वयं 'नशा' कर 'हेलमेट' पहन बैठ गयी है ....
जी हाँ !! सत्ता का 'नशा' और निर्लज्जता का 'हेलमेट' !!!!

Monday 5 January 2015

//// भागवत - बनाम - ओवैसी .... दोनों को ख़ारिज करना ही होगा ////

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कल RSS प्रमुख मोहन भागवत द्वारा दिए गए वक्तव्यों पर नज़र डालें >>>>
> भारत हिन्दू राष्ट्र है - अगर हिन्दू समाज खतरे में आएगा तो देश भी खतरे में पड़ जाएगा ....
> इसलिए देश के लिए हिन्दू समाज को अपनी जवाबदेही तय करनी होगी - हिन्दुओं को एकजुट होना होगा ....
> ये देश परंपरा से हिन्दू देश है - देश के भले बुरे का जिम्मेदार हिन्दू है ....
> समाज को सरकार भरोसे नहीं रहना चाहिए - सरकार सब कुछ नहीं कर सकती ....
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और कल ही MIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी द्वारा दिए गए वक्तव्यों पर नज़र डालें >>>>
> इस्लाम सभी धर्मों का वास्तविक घर है ....
> जब सभी धर्मों के लोग इसे अपनाएंगे, तब यह वास्तविक 'घर वापसी' होगी ....
> हर बच्चा मुस्लिम पैदा होता है - माता पिता उसे अन्य धर्म में बदल देते हैं ....
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मित्रों अब आप और हम थोड़ी विवेचना भी कर लें ....
> हिन्दू कहेंगे भागवत सही और ओवैसी बकवास - ओवैसी साम्प्रदायिकता भड़का रहे हैं - वे मुसलमानो को उकसा रहे हैं - वे हिन्दू विरोधी बयान दे रहे हैं .... आदि इत्यादि ....
> मुसलमान कहेंगे ओवैसी सही और भागवत बकवास - भागवत साम्प्रदायिकता भड़का रहे हैं - वे हिन्दुओं को उकसा रहे हैं - वे मुसलमान विरोधी बयान दे रहे हैं .... आदि इत्यादि ....
> और यदि कोई दोनों के विरुद्ध बोलेगा तो उक्त धार्मिक उन्मादी सांप्रदायिक हिन्दू और मुसलमान उसे चुन-चुन कर गालियां देंगे और उसको 'सेक्युलर' कहके उसका उपहास भी करेंगे ....

मित्रों मैं आज फिर इन सभी धार्मिक उन्मादी सांप्रदायिक लोगों की गाली खाने के लिए मजबूर हूँ और हाज़िर हूँ - क्योंकि आज मैं फिर कलम और बुलंद आवाज़ से भागवत और ओवैसी दोनों को धिक्कारते हुए कहता हूँ >>>>
> केवल इंसानियत सभी धर्मों का मूल है ....
> जो पैदा होता है वो केवल इंसान ही होता है - न हिन्दू न मुसलमान ....
> जो हिन्दू और मुसलमान इंसानियत की बात करेगा सही मायने में घर वापसी उसकी ही होगी ....
> मैं चाहता हूँ हमारा देश न हिन्दुओं का हो ना मुसलमानों का - हो तो बस इंसानों का ....
> मैं चाहता हूँ कि समाज में साम्प्रदायिकता की कोई जगह नहीं हो - इसलिय हमें भागवत और ओवैसी दोनों को ख़ारिज करना ही होगा ....
> मैं मानता हूँ कि देश में सौहार्द स्थापित करने के लिए सरकार की अहम भूमिका होती है और जो सरकार इस दायित्व का निर्वहन नहीं करती उस सरकार को भी ख़ारिज करना ही होगा ....
धन्यवाद !!!!

Sunday 4 January 2015

//// धार्मिक भक्तों का बीमा !! .... तो क्या राजनैतिक भक्तों का बीमा भी होगा ?? ////

आज दैनिक भास्कर के प्रथम पृष्ठ पर छपे एक विशिष्ठ समाचार की ओर आप सबका और विशेष कर "भक्तों" का ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगा ....
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// सोमनाथ में भक्तों का पांच करोड़ का बीमा //
जूनागढ़ ! सोमनाथ ज्योतिर्लिंग महादेव मंदिर ने भक्तजनों की सुरक्षा के लिए पांच करोड़ रूपए का बीमा लिया है | इसमें प्राकृतिक आपदा और आतंकी हमले की रिस्क शामिल है | न्यास इसके लिए ७५ हजार रूपए प्रति वर्ष का प्रीमियम भुगतान करेगा |
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मित्रों अब मैं अचंभित हूँ कि यदि मंदिर के न्यास वालों या सही कहूँ कि ठेकेदारों या एजेंटों को ही महादेव से ज्यादा बीमा कंपनी पर या सांसारिक व्यवस्थाओं पर भरोसा हो गया है तो भक्त लोग ही क्यों लकीर पीट रहे हैं ??
क्या भक्तों को भी ये नहीं सोचना चाहिए कि महादेव जी से धन दौलत सुख समृद्धि मांगने से शायद नहीं मिलेगी - और उसके लिए तो सांसारिक व्यवस्थाओं के तहत सार्थक कर्म और प्रयत्न ही करने होंगे ??
अब ये तो हुई धार्मिक भक्तों की बात ....
पर क्योंकि आजकल धर्म और राजनीति का घालमेल चरम पर है तो मैं सोचता हूँ कि लगे हाथ राजनैतिक भक्तो के बारे में भी अपने उदगार प्रेषित कर ही दूँ ....
आजकल ये भक्त जो हर बात के लिए मोदी का अंधे बन समर्थन कर रहे हैं उन्हें भी चेताना चाहूंगा कि इतना भरोसा तारीफ जाप और भक्ति भी ठीक नहीं - भरोसा करें पर जरा नाप-तोल कर - महादेव या ईश्वर द्वारा दी गयी बुद्धि का सदुपयोग करते हुए - अपनी आँखे खोल कर .... नहीं तो कहीं ऐसा दिन ना देखना पड़े कि आपको भी बीमा करवाना पड़े ....
जैसे कि मसलन यदि मोदी कालाधन लाने या शौचालय बनवाने में अक्षम रहे तो बीमा कंपनी इसकी भरपाई करेगी !@#$%&?

Saturday 3 January 2015

//// अरे भाई अब लफ़्फ़ाज़ी छोड़ कुछ काम भी तो करो - ताकि ना हो 'आलोचना' और ना ही लगें 'आरोप' ////

मोदी जी ने आज फिर बेसिर-पैर की बात कह मारी कि लोकतंत्र में 'आलोचना' तो होनी ही चाहिए पर 'आरोप' नहीं !@#$%&?
क्यों भाई क्या भारत में लोकतंत्र मई २०१४ से ही आया है ?
क्या मोदी जी ने मई २०१४ के पहले कभी किसी पर 'आरोप' नहीं लगाया था ?
और क्या मई २०१४ के बाद भी क्या मोदी जी ने किसी पर 'आरोप' नहीं लगाया है ?
क्या उनका उपरोक्त वक्तव्य भी मीडिया या स्वयं उनके आलोचकों पर 'आरोप' तो नहीं ? और 'आरोप' नहीं तो फिर 'आलोचना' का क्या औचित्य ??
मुझे तो ऐसे प्रश्न ही समक्ष में रखना हास्यास्पद लग रहा है .... मुझे लग रहा है कि ये ५६ इंची सीने वाले व्यक्ति को हो क्या गया है ? ये तो अब 'आलोचना' से भी भाग रहे हैं ? इतने कितने छुइ-मुई हुए जा रहे हैं ? जवाब देते नहीं बन रहा तो 'आलोचना' और 'आरोप' शब्दों का घालमेल कर बचना चाहते हैं ????
इसलिए अब ऐसे प्रश्नो को छोड़ मैं कुछ उच्च स्तर के प्रश्न रखता हूँ ....
यदि मैं वक्तव्य आप के समक्ष रखूँ कि - // मोदी सरकार निकम्मी है क्योंकि इस सरकार ने अपने वायदे अनुसार काम नहीं किये // .... तो अब आप बताएं कि मेरा वक्तव्य 'आलोचना' है या 'आरोप' ????
चलिए मैं ही साफ़ कर दूँ कि मेरा उपरोक्त वक्तव्य मेरी 'आलोचना' और 'आरोप' दोनों ही व्यक्त करता है - और मेरा उपरोक्त वक्तव्य देने का मुझे लोकतांत्रिक अधिकार है - और मेरे उपरोक्त वक्तव्य से लोकतंत्र को कदापि हानि नहीं पहुँच सकती है !!!!
अतः एक बार पुनः मोदी जी को समझाइश देना चाहूंगा कि लफ़्फ़ाज़ी युक्त बेमतलब की बचकानी बातें छोड़े - अपने दिमाग को सही दिशा में इस्तेमाल करें - क्या 'आलोचना' है क्या 'आरोप' हैं इस पर परेशान न हों - और बेहतर होगा कि कुछ काम करें - ऐसे काम कि ना कोई आपकी 'आलोचना' कर सके न कोई आप पर 'आरोप' लगा सके ..... धन्यवाद !!!!
और भक्तों से विशेष निवेदन - आपको मोदी जी की कसम - आगे से मेरे पर या अन्य किसी पर भी कोई 'आरोप' लगाने का लोकतांत्रिक पाप ना करें !!!!
हाँ आपकी 'आलोचना' मेरे सर-माथे - पर सावधान !! हर बार सौ बार निश्चित कर लेना कि कहीं 'आरोप' का पुट गलती से भी ना आने पाये .... वर्ना .... समझ गए ना ????

//// 'हिंदी' भाषा - क्या सुविधानुसार मापदंड ही औने-पौने बदल तो नहीं गए ? ////

आज मोदी जी ने १०२ वें भारतीय विज्ञान कांग्रेस का उदघाटन करने के उपलक्ष में अंग्रेजी में भाषण दिया !!!!
अभी तक हम मोदी जी के भाषण अधिकतर हिंदी में ही सुनते आये हैं जो विशिष्ठ शैली में धाराप्रवाह होते हैं और अपना असर भी छोड़ते रहे हैं !!!!
पर इसके विपरीत आज का भाषण नीरस और अजीब सा ही लगा .... मेरे आंकलन अनुसार इसका मुख्य कारण ये रहा कि मोदी जी ना तो अंग्रेजी में पारंगत हैं ना ही उनका उच्चारण दोष रहित या ही  कर्णप्रिय है !!!!
पर फिर भी क्योंकि शायद ज्यादातर वैज्ञानिक दक्षिण भारत एवं गैर हिंदीभाषी क्षेत्रों से आते हैं जिनके लिए हिंदी समझना मुश्किल होता है इसलिए उन्होंने अंग्रेजी में भाषण देना उचित समझा होगा - जिसकी प्रशंसा की जानी चाहिए !!!!
पर फिर एक प्रश्न भी उठता है कि मोदी जी के UN में दिए भाषण को हिंदी में होने के कारण बढ़-चढ़ कर क्यों सराहा गया था ?? शायद भक्तों और मोदी समर्थकों और अन्य भारतियों ने यही तो कहा था कि इससे हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी का मान बढ़ता है - आदि !!!!
तो क्या अब मापदंड भी बदल तो नहीं गए ? या माना जाए कि मोदी जी के भाषण की भाषा हिंदी होने के आधार पर सराहना बेमानी और मिथ्या थी ?? क्या फरक पड़ता था यदि मोदी जी UN में भी भाषण अंग्रेजी में ही दे देते ?? पर फरक तो पड़ा था !!!! है ना !!!!
तो फिर तो सुविधानुसार मापदंड ही औने-पौने बदल गए लगते हैं ....

Friday 2 January 2015

//// आज मैंने भी "मॉक ड्रिल" करी .... मुझे अच्छा लगा .... ////

गुजरात पुलिस की 'मॉक ड्रिल' में दयनीय एवं आपत्तिजनक मानसिकता देखने को मिली - वही सड़ांघ मारती घिनौनी साम्प्रदायिकता की मानसिकता ....
मित्रों प्रतिक्रिया स्वरुप आज मैंने भी गुजरात की भाजपा सरकार के अघीन गुजरात पुलिस और साम्प्रदायिकता की बीमारी से ग्रसित उन भाजपाइयों और भक्तों और तनातनी हिन्दुओं और वाहियात मुसलमानों के विरुद्ध 'मॉक ड्रिल' करी - जी हाँ - // गालियां देने की 'मॉक ड्रिल' //
जैसे कि यदि ये पुल्लू के अट्ठे मेरे सामने पड़ जाएँ तो मैं इन्हे चुन-चुन कर कौनसी गालियां दूंगा ??
मेरा यकीन करें .... मैंने कल्पना करी ये लड़ रहे थे चिल्ला रहे थे - मेरा हिन्दू धर्म सबसे अच्छा - मेरा इस्लाम सबसे अच्छा - और मैं इन्हे नायाब गालियों से ज़लील करने की 'मॉक ड्रिल' कर रहा था ....
चुप स्साले - नामुराद झकोरे - अधर्मी कीड़े - इंसानियत के दुश्मन ....!@#$%&?  आदि इत्यादि !!!!
सच कहता हूँ कस्सम से मेरी सफल 'मॉक ड्रिल' के बाद मैं कुछ हल्का महसूस कर रहा हूँ - मुझे लग रहा है कि मैंने भी अपने सामाजिक दायित्व के निर्वहन करने का प्रयास किया है ....
आप से भी अनुरोध है कि आप भी अपने सामाजिक दायित्वों के निर्वहन करने और इंसानियत को ज़िंदा रखने का प्रयास करते रहें ....
धन्यवाद !!!!

//// नई नीति की योजना ? या नई योजना की नीति ?? या सब बकवास ???....////

सरकार की नयी घोषणा - 'योजना आयोग' अब 'नीति आयोग' कहलायेगा !!!!
अंग्रज़ी में "Planning Commission" अब कहलायेगा - "NITI (National Institution for Transforming India) आयोग" !!!!
मेरे प्रश्न .... इस नीति और योजना विहीन सरकार से - कुछ विवेचना के साथ >>>>
> अब योजना कौन बनाएगा या केवल नीति बनाने से काम चल जाएगा ?
> क्या 'नीति आयोग' योजना नहीं बनाएगा ?
> क्या 'योजना आयोग' नीति नहीं बनाता था या बना सकता था ?
> क्या नीति बनाना योजना बनाने से ज्यादा जरूरी है ?
> क्या नीति बनाने में बहुत समय लगता है और ये एक पूर्णकालिक कार्य है ?
> क्या ये सरकार और इसका 'नीति आयोग' अगले पूरे पांच साल नीतियां ही बनाता रहेगा ?
> क्या नीति बनाई भी जाती है ? या ये बस होती भर नहीं है ?? जैसे ईमानदारी पर चलने की नीति - सबको साथ लेकर चलने की नीति - सभी धर्मों का आदर करने की नीति - ना खाऊंगा ना खाने दूंगा की नीति - 'मेक इन इण्डिया' की नीति - सत्य पर चलने की नीति - स्वराज की नीति ?
> क्या ये सरकार अभी तक बिना नीति के चल रही थी ?
> क्या इस सरकार को अभी 7 महीने में अपनी नीतियां सहीं नहीं लगी थीं ?
> क्या किसी संस्था का नाम भर बदलने से काम भी बन जाएगा ?
> क्या अंग्रेजी के 4 Letters N I T I को मिला हिंदी शब्द 'नीति' का नाम देने का मतलब वाकई हिंदी के शब्द 'नीति' और अंग्रेजी के शब्द 'POLICY' से ही लेना देना है - या शब्दों का घालमेल ????
ऑफ़ ओह .... मैं भी आवेश में यूं ही कितने प्रश्न पूछ बैठा ... और वो भी किस से ????
जिसकी 7 माह में भी ना कोई नीति दिखी ना ही योजना ....
बस कुछ था तो - हवाबाजी - लोगों को बेवकूफ बनाने के नित नए हथकंडे - निर्लज्जता के साथ साम्प्रदायिकता को हवा देना - धोखा - और नए नए वादे - नए नए सब्जबाग - नए नए पैंतरे - जहाँ चुप्पी की दरकार थी वहां बड़बोलापन - जहाँ बोलना अपेक्षित था वहां चुप्पी !!!!
मेरे आंकलन अनुसार इस सरकार को नीति और योजना से अव्वल एक अच्छे ईमानदार नेतृत्व की जरूरत है - और जरूरत है बुरे सांसदों से छुटकारा और अच्छे सांसदों का समावेश ....
मेरा यकीन मानें - सही नीति और उचित योजना अपने आप मूर्त रूप ले लेगी ....
फिर आप संस्थाओं का नामकरण लफ़्फ़ाज़ी के साथ कुछ भी करें ....
"NITI (National Institution for Transforming India) आयोग"
......................... या ........................
"FAKU (Federal Administration & Knowledge Usage) आयोग"

Thursday 1 January 2015

//// इंसानियत के हिमायतियों को सच्चे दिल से नववर्ष की शुभकामनाएं .... ////

जब राजनीति और धर्म का घालमेल हो जाए तो इंसानियत शर्मिंदा होती ही है ....
और मैं ये पुनः होता देख रहा हूँ ....
मैं निराशावादी नहीं - पर बिना वजह आशा का कंबल भी नहीं ओढ़ सकता हूँ ....
मैं बद्तमीज़ भी नहीं - पर सभी अच्छे बुरों को शुभकामनाएं भी तो नहीं दे सकता ....
इसलिय आज अपने दिल पर पत्थर रख मैं उन सभी इंसानियत के दुश्मनों के लिए कहने पर मजबूर हूँ कि - आपको शुभ-काम-ना-आएं !!!!
और हाँ इस नववर्ष की सुहानी सुबह आप सभी इंसानियत के हिमायतियों को दिल से कहना चाहता हूँ कि - आपको शुभकामनाएं !!!! हार्दिक शुभकामनाएं !!!! बहुत बहुत शुभकामनाएं !!!!