Thursday 9 March 2017

// क्या सच्चाई भी सच्चे टुच्चे की मनमाफिक़ मान्यता की मोहताज हो सकती है ?? ..//


लखनऊ में मारे गए आतँकवादी सैफुल्लाह के पिता सरताज़ जी ने बेटे का शव लेने से इंकार किया - कह दिया - "नहीं चाहिए देशद्रोही का शव" .. .. 

और मुझे पक्का यकीन है कि भक्त भी शालीनता से मान जाएंगे कि - यदि सैफुल्ला मुसलमान था - तो उनके वालिद सरताज जी भी मुसलमान ही हैं .. और कोई ज़रूरी नहीं कि आतंकी या देशभक्त का बाप या फिर बेटा आतंकी या देशभक्त ही हो .. ..

और इसलिए ही कहता आया हूँ कि देशहित में सांप्रदायिक सोच को नकारना ही होगा - और भाईचारे का वातावरण बनाना ही होगा .. और कोई बेहतर विकल्प है ही नहीं .. ..

इसी कड़ी में एक और बात .. .. 

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार महमूद अली दुर्रानी भी आखिर सच बोल ही गए .. ३-४ दिन पहले दिल्ली में आतंकवाद विषय पर एक सम्मलेन में दुर्रानी ने स्वीकार किया कि मुंबई में आठ साल पहले हुआ आतंकवादी हमला पाकिस्तान में कार्यरत आतंककारी संगठनों ने किया था .. ..

तो क्या दुर्रानी जी ऐसा सच बोलने के कारण सच्चे हुए ?? .. या टुच्चे जयचंद या विभीषण जैसे दोगले गद्दार ?? .. या फिर पाकिस्तान के लिए टुच्चे और भारत के लिए सच्चे ?? .. .. या फिर मनमाफिक़  जिसको जो मानना है मान लिया जाए ?? .. ..

और यदि दुर्रानी सच्चे हुए तो क्या कभी भी कहीं भी सच्चाई के साथ सच बात बोलना गुनाह होगा ?? .. .. और क्या सच्चाई भी सच्चे टुच्चे की मनमाफिक़ मान्यता की मोहताज हो सकती है ?? .. ..

सोचियेगा !! .. विषय बहुत गंभीर है .. इसलिए भक्तों के लायक नहीं .. इसलिए आप तो जरूर ही सोचियेगा !! .. धन्यवाद !! जय हिन्द !!

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