Wednesday 22 March 2017

// एक समझौता "समझे?" "समझाऊँ?" के साथ करा लिया जाता है - दूसरा "समझाकर" ..//


/.. अबे ओ !! इधर आ तो .. देख कान खोल के सुन्ले .. कोर्ट के बाहर समझौता कल्ले .. वरना !! .. समझा ?? - या समझाऊँ ?? .. ..

कोर्ट के बाहर - कोर्ट के तंग प्रांगण में - अपराध जगत के - बंद मकानों में - खुले गलियारों में - और विशाल मैदानों में - ऐसा कुछ तो हमेशा से कहा जाता रहा है - किया जाता रहा है - होता आया है .. .. और इसलिए मैं ये दावे से कह सकता हूँ कि इस देश में सबसे ज्यादा समझौते यदि किसी ने किए होंगे या जबरन करवाए होंगे - तो वो सक्षम अपराधियों ने ही किए करवाए होंगे .. शर्तिया !! .. ..

इसलिए आप किसी भी समझौते की पेशकश जो "अबे" से शुरू होकर "वरना !!" "समझा?" "समझाऊँ?" पे ख़त्म होती है उसे समझौते की पेशकश ना समझते हुए सक्षम अपराधियों की चाल या दांव या वार या हरकत समझेंगे तो उपयुक्त होगा .. ..

पर आपको यह भी समझना होगा कि जब दो पक्ष आपस में लड़ते भिड़ते एक दूसरे को नुकसान पहुंचाते - मरते मिटते खपते ही रहते हैं - और तब यदि कोई दोनों का हितैषी - या कोई अन्य सज्जन बिना किसी स्वार्थ के - दोनों को समझाते हुए दोनों को ना लड़ने की उचित नेक सलाह देते हुए समझौता करने के लिये समझाता है - और प्रेरित करता है - तो इसे आप बेहतरीन नेक प्रयास ही मानेंगे तो उपयुक्त होगा .. ..

अतः आप कह सकते हैं .. समझौते २ प्रकार के होते हैं .. ..
पहला समझौता जो "समझे?" "समझाऊँ?" के साथ कराया जाता है .. .. जैसा माननहीं स्वामी कराना चाहते हैं .. ..
और दूसरा समझौता जो "समझाकर" कराया जाता है .. .. जैसा कि माननीय जस्टिस खेहर कराने का प्रयास करते दिख रहे हैं .. .. 

समझ गए ना !! .. या फिर समझाऊँ ?? .. हा !! हा !! हा !! .. ..

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