Wednesday 12 April 2017

// कहीं हम 'भी' तो - या हम 'ही' तो - "धर्मांध" नहीं हो चले हैं ?? ....//


आज की बात बहुत सीधी एवं संक्षिप्त .. और मेरे अल्पकालिक चिंतन का निचोड़ !! .. ..

क्या धर्म किसी को अँधा बना सकता है ?? .. ..
यदि नहीं तो ये "धर्मांध" शब्द क्यों ?? इसका क्या औचित्य ?? .. ..

तो क्यों ना सभी धार्मिक लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले और धर्म पर ही सीधी चोट करने वाले इस शब्द "धर्मांध" को एक मुहीम चला सर्वत्र विलोपित करवाएं - इस शब्द को ही उखाड़ फेंके - इस शब्द को ही असंवैधानिक करार करवा दें - इस शब्द पर ही बैन लगवा दें ?? .. ..

मेरी उपरोक्त बात के तर्क में जानिये कि क्या ज्ञान भी किसी को अँधा करता है या कर सकता है ?? .. नहीं ना !! .. इसलिए "ज्ञानांध" शब्द का अस्तित्व भी नहीं .. है ना !! .. ..

या फिर ईमानदारी से सोचें कि - कहीं ये कोई "धर्म" ही तो नहीं जिसके वशीभूत कई 'अन्य' लोग अंधे हुए जा रहे हैं .. या फिर कहीं हम 'भी' तो - या हम 'ही' तो - "धर्मांध" नहीं हो चले हैं ?? .. ..

नहीं नहीं !! .. क्या है ना कि आखिर ये मामला सीधे-सीधे धर्म से जुड़ा हो धार्मिक ही तो हुआ ना .. तो फिर सोचने में बुराई ही क्या है .. धार्मिक सोच में तो कोई बुराई नहीं ना !! .. ..

अतः मेरे सभी धर्मालु मित्रों से पूरी क्षमा और आग्रह और विनती के साथ अनुरोध .. कृपया सोचिये - थोड़ा हटकर भी सोचिये - कृपया सच्चे इंसानी उन्मुक्त अंदाज़ में भी तो सोचिये .. धन्यवाद !!

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