Friday 12 May 2017

// जी हां !! केजरी का विरोधियों से इस्तीफ़ा माँगना और खुद इस्तीफ़ा नहीं देना सही है ..//


एक तर्क .. जब दूसरों पर केजरीवाल आरोप लगाते थे तो कहते थे अगर बेकसूर हैं तो इस्तीफा दें और खुद को बेकसूर साबित करें .. आज केजरीवाल के खुद के साथी केबिनेट में मंत्री रहे कपिल मिश्रा ने जब उन पर आरोप लगाए हैं तो उन्हें भी इस्तीफ़ा दे देना चाहिए और जाँच होने के बाद अगर बेकसूर साबित होते हैं तभी वापस पद पर लौटना चाहिए .. ..

और तर्क के विरुद्ध मेरी प्रतिक्रिया मेरे तर्कों के साथ .. ..

उस वक़्त भी केजरीवाल द्वारा आरोपित ढेर सारे नेताओं में से किसी भी नेता ने इस्तीफ़ा नहीं दिया था .. और ना ही केजरीवाल द्वारा आरोपित कोई भी नेता आज या कल इस्तीफ़ा देगा .. और आज या कल केजरीवाल भी इस्तीफ़ा नहीं दे रहे हैं .. हिसाब बराबर !! .. ..

लेकिन फिर प्रश्न उठता है कि केजरीवाल और अन्य में अंतर क्या ?? .. और ये प्रश्न भक्तों द्वारा फुदक-फुदक बिना शर्म उठाना स्वाभाविक ही है .. ..

अब यदि किसी को केजरीवाल और अन्य में अंतर होते हुए भी अंतर नहीं लगता हो तो फिर ऐसे भक्तों से तो मेरा भी एक चुभने वाला प्रश्न है कि - फिर राहुल-सोनिया या मोदी ही क्यों - कांग्रेस या भाजपा ही क्यों - केजरीवाल या 'आप' क्यों नहीं ?? .. अरे भाई वर्षों कांग्रेस भाजपा को खाने पीने लूटने दिया है तो फिर कुछ वर्ष 'आप' को भी मौक़ा क्यों ना दिया जाए ?? .. क्या भ्रष्टाचार करना केवल कांग्रेस या भाजपा की बपौती है ?? .. मैं आशा करता हूँ कि ये प्रश्न भक्तों को जरूर चुभेगा और उचकाएगा .. ..

पर यदि किसी को केजरीवाल और अन्य में अंतर लगता है तो फिर तो उसके लिए मुद्दा ही सुलझ जाता है .. मसलन मुझे केजरीवाल और अन्य में एक नहीं बहुत बड़े-बड़े अंतर दिखते हैं .. और सबसे बड़ा अंतर यह है कि केजरीवाल ने उस वक्त जितने भी आरोप लगाए थे वे सभी आरोप विभिन्न जांच या अन्य एजेंसियों के द्वारा उजागर किये गए आधिकारिक आपत्तियों या उद्घोषणाओं या कार्यवाही पर आधारित थे - और सभी आरोप किसी एक व्यक्ति के खिलाफ ना होते हुए अनेक दिग्गज व्यक्तियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक मुहीम के तहत लगाए गए आरोप थे .. लेकिन केजरीवाल के विरुद्ध अब तक जितने भी आरोप लगे हैं वे सभी आरोप अनेक व्यक्तियों के द्वारा एक केजरीवाल के विरुद्ध व्यक्तिगत भड़ास निकालने हेतु और केजरीवाल और उनकी 'आप' पार्टी को बदनाम करने या फंसाने के मकसद से ही लगाए गए सिद्ध होते हैं .. मसलन कपिल मिश्रा के आरोप केवल और केवल केजरीवाल के विरुद्ध हैं जो कपिल की व्यक्तिगत भड़ास निकालने के मकसद से ओतप्रोत दिखते हैं .. और मैं मानता हूँ कि ऐसे आरोपों को भ्रष्टाचार के विरुद्ध मानना अपने आप में भ्रष्टाचार करने से कम नहीं माना जा सकता .. ..

एक बात और - केजरीवाल के तमाम ताकतवर विरोधी ही नहीं बल्कि उनके ढेर सारे मौकापरस्त संगीन संगी साथी भी सब मिलजुल कर उनके ऊपर लगातार ढेर सारे आरोप लगाते रहने के बावजूद उन्हें झुका नहीं सके हैं .. और उनके सारे विरोधी और साथी ऐन-केन-प्रकारेण उन्हें निपटाने के अथक भरपूर असफल प्रयास करते दिख रहे हैं .. और आरोप हैं कि सही निकलने का नाम ही नहीं लेते .. और ऐसी स्थिति में यदि केजरीवाल इस्तीफ़ा दे देते हैं तो ये उनके विरोधियों को बैठे-बैठाए जीत परोसने जैसी बात हो जाएगी .. क्योंकि वो झुकते नज़र आएँगे .. ..

और हाँ एक और मज़े की बात है .. जब केजरीवाल कोंग्रेसियों पर आरोप लगाते है तो भाजपाई भी आरोपों का समर्थन नहीं कर विरोध केजरीवाल का ही करते हैं .. जब केजरीवाल भाजपाइयों पर आरोप लगाते हैं तो कोंग्रेसी भी आरोपों का समर्थन ना कर विरोध केजरीवाल का ही करते हैं .. पर जब कोई भी कोंग्रेसी या भाजपाई या कोई अन्य ही केजरीवाल पर आरोप लगाता है तो सब टनटनाट हो जाते हैं - मानो करंट दौड़ गया हो .. ..

और वैसे कोंग्रेसी और भाजपाई एक दुसरे पर आरोप लगाते ही रहे हैं और लगा रहे हैं - पर उन आरोपों को आरोपों तक ही सीमित रख उन आरोपों पर किसी भी प्रकार की कार्यवाही रोकने की भरपूर पुख्ता जुगाड़ करते भी दिखते हैं .. और स्पष्ट नज़र आता है कि ये दोनों मुख्य पार्टियां आपस में मिली हुई हैं और इनके परस्पर आरोप केवल आरोप ही होते हैं .. और नतीजा यह है कि ना खाऊंगा ना खाने दूंगा वाले के रहते एक भी बड़े से बड़ा या फिर टुच्चा सा ही आरोप अब तक अपने अंजाम तक नहीं पहुंचा है - और जम के खाना पीना निगलना डकारना हगना सब धड़ल्ले और बेशर्मी से चल रहा है .. ..

इसलिए मैं केजरीवाल और अन्य में अंतर को महसूस करते हुए केजरीवाल के द्वारा इस्तीफ़ा मांगने का भी समर्थन करता हूँ और उनके द्वारा इस्तीफ़ा नहीं देने का भी .. कोई आपत्ति ?? .. यदि कोई आपत्ति हो तो फिर कर लो जो करते बने .. मैदान खुल्ला है - और केजरीवाल भी छुट्टा खुल्ला है .. समझे ?? .. हा !! हा !! हा !! .. !! जय हिन्द !!

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