Tuesday 5 September 2017

// कोविंद जी ने चरखा नहीं चला ठीक किया - और मोदी जी ने चरखा चला कुछ उखाड़ नहीं लिया .. ..//


कल देश में उच्चस्तर की एक विशेष घटना घटित हो गई .. महामहिम राष्ट्रपति कोविंद जी भी पहुँचे अहमदाबाद में गांधीजी के साबरमती आश्रम में - जैसे कि सब बड़े ओहदे वाले जाते रहे हैं और अपने मोदी जी भी वहां अपने डोकलामी चीनी दोस्त के साथ पहुँचे थे .. ..

पर घटना ये घट गई कि वहां पहुँच कोविंद जी ने चरखा चलाने से इंकार कर दिया - और बकायदा ये कहके इंकार कर दिया कि - "चरखा चलाने का अधिकार उसे ही है जो नियमित खादी पहने" .. तौबा !! .. ..

इस चरखा प्रसंग में मेरी "चरखी" प्रतिक्रिया .. ..

मुझे लगता है कि महामहिम मार्के की धाँसू और तर्कसंगत बात कह गए .. पर फिर मुझे लगा कि भक्त तो बेचारे पानी-पानी या आग बबूला हो गए होंगे - क्योंकि जब लाखों के सूट-बूट वाले परिधानमंत्री वहां गए थे तो चरखा चला के आए थे - और चरखा चलाते की फोटुएं भी खिचवा आए थे .. और ये कोविंद जी जिनको राष्ट्रपति बनवाया ही मोदी जी ने वो फ़ोकट ही मोदी की किरकिरी कर गए .. ..

पर मोदी जी के कृत्य को मैं एक अलग नज़रिये से भी देखता हूँ - और सोचता हूँ कि मोदी की चरखा चलाने के लिए निंदा नहीं होनी चाहिए और इसका कारण या दोषारोपण कोविंद जी के माथे तो बिलकुल नहीं मढ़ा जाना चाहिए .. और मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि मोदी ने चरखा चला कर भी आखिर क्या उखाड़ लिया ?? .. और नहीं भी चलाते तो किसका और क्या बुरा-भला हो जाता ?? ..

मेरे कहने का सार तो ये है कि .. कोविंद जी ने चरखा नहीं चला ठीक किया - और मोदी ने चरखा चला कुछ उखाड़ नहीं लिया .. ..

और चूँकि आज शिक्षक दिवस भी है - और मोदी जी को बिना शिक्षा या ज्ञान शिक्षक के रूप में ज्ञान बघारने का भी शौक शगल रहा है - मैं तो यह भी सोच रहा था कि - जिस व्यक्ति की खुद की डिग्री फ़र्ज़ी हो संदिग्ध घोषित करवा दी गई हो - क्या उसे शिक्षक दिवस पर शुभकामनाएं देना भी शोभा देता है ?? .. ..

सोचियेगा - महामहिम राष्ट्रपति के द्वारा दिए गए संदेश और मार्गदर्शन के परिप्रेक्ष्य में सोचिएगा - और शायद महसूस करियेगा कि मोदी जी को तो अपनी औकात अनुसार किसी भी प्रकार का उपदेशी या संदेशी कार्य करने से संकुचित या वंचित ही रहना चाहिए .. है ना !!

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

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