Thursday 19 October 2017

// 'परोपकारी' हत्याओं के भयावह चलन के बीच - दीपावली की शुभकामनाएं !! .. ..//


आजकल मुझे लगता है हत्याएं बहुत बढ़ गई हैं .. हत्याएं तो पहले भी होती थीं पर शायद इतनी नहीं - और जो होती थीं तो वो व्यक्तिगत कारणों से ज्यादा .. मसलन जमीन जायदाद के झगड़ों में - छेड़ा-छाड़ी के मामलों में - आपसी रंजिश में - और धन की लूट के चक्कर में .. ..

पर अब देखते-देखते राजनीतिक हत्याएं भी बढ़ गई हैं और धार्मिक उन्माद के कारण और विचारधारा के टकराव के कारण भी हत्याएं बढ़ गई हैं .. यानि हत्याएं अब व्यक्तिगत कारणों से ऊपर निकल सामाजिक सरोकारों के इरादे से ज्यादा होने लगी हैं .. हत्याएं भी अब 'परोपकारी' सी होने लगी हैं !! .. ..

और ऐसी परिस्थितियों और मानसिकता पर अंकुश रहे - शायद धर्म इसलिए ही गढ़ा बनाया गया होगा .. और ये साधू संत महात्मा मौलवियों का शायद काम ही यही था कि वो समाज को सहिष्णुता और इंसानियत का पाठ पढ़ाएं .. और बताएँ कि हत्या करना पाप होता है .. ..

पर विडंबना देखिये कि पूरे समाज में इंसानियत अहिंसा सहिष्णुता की बात करने वाले विलुप्त से हो गए हैं - और ये साधू संत महात्मा मौलवी भी तो धर्म के नाम पर मरने मारने कटने काटने युद्ध करने जैसी बातें करने लगे हैं .. और तो और ये लोग दिन भर धार्मिक ग्रंथों कथाओं कहानियों इतिहास के हवाले से लड़ाई झगड़ों के उद्धरण दे युद्ध युद्ध और युद्ध की ही तो बातें करते रहते हैं .. जैसे युद्ध ना हुआ कोई धार्मिक अनुष्ठान हो गया .. ..

और बड़े ताज्जुब की बात है कि आजकल तो भीड़ बन अपनी मनमानी करने वाले धर्म-रक्षक संस्कृति-रक्षक भी नारे भगवान् के नाम के ही लगाते हैं - मसलन समुद्र किनारे किसी कलाकार द्वारा ४८ घंटे लगातार मेहनत कर 'पद्मावती' की विशाल रंगोली को कोई १०० लोगों की भीड़ 'जय श्री राम' के नारे लगाते हुए आती है और आकर मिटा देती है .. और किसी राम भक्त के माथे पर शिकन नहीं आती .. किसी को ध्यान भी नहीं आता की प्रभु श्री राम तो मर्यादा पुरषोत्तम थे - और ऐसी गुंडागर्दी तो मर्यादित हो नहीं सकती !! .. ..

और तो और जो धर्मनिरपेक्षता या शान्ति की बात करे तो वो तो उल्लू या विभीषण या दोगला या नपुंसक या राष्टद्रोही करार दे दिया जाने लगा है .. ..

और इसलिए आज मैं सावधान करना चाहता हूँ - बहुत निकट भविष्य में ये हत्याओं की संख्या असंख्य भी हो सकती है .. क्योंकि हत्याओं को 'परोपकार' का जामा पहनाया जा चुका है - यानि खुद के लिए नहीं बल्कि किसी और को उपकृत करने के लिए .. और हमारे देश की अधिकतर जनता 'परोपकारी' ही है !! .. वो हत्याएं व्यक्तिगत टुच्चे कारणों से नहीं करेगी अपितु समाज के हित में निःस्वार्थ किसी अन्य की भलाई के लिए करेगी .. ठीक वैसे ही जैसे कि सीमा पर एक सैनिक दूसरे देश के सैनिक की हत्या कर वीर हो जाता है - आत्मग्लानिमुक्त !! .. ..

बीते वर्ष जिन परिवारों में हत्याएं हुई हैं मेरा ध्यान आज उन परिवारों की स्थितियों पर भटका सा जा रहा है - और मैं सोच रहा हूँ कि उनकी दीपावली कैसी मन रही होगी .. पर इस आशा के साथ कि काश कुछ ऐसा हो जाए कि इस देश की अगली दीपावली हत्या रहित हो .. ..

इस दीपावली की आपको शुभकामनाएँ !!

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

No comments:

Post a Comment