Sunday 5 November 2017

// मोदी खिचड़ी के बजाय केसरिया लड्डुओं पर दांव लगाते तो बेहतर ना होता ?? ..//


खिचड़ी आजकल चर्चा में रही .. या महंगाई बेरोजगारी साम्प्रदायिकता शिक्षा स्वास्थ्य गरीबी की बातों को दबाने के प्रयास में चर्चा में ले आई गई थी .. .. और मोदी और रामदेव जैसी शख्सियतें भी अपनी-अपनी खिचड़ी पकाते दिख रहीं थीं .. ..

पर खिचड़ी के चक्कर में इनका रायता ही फैलता रहा .. और मोदी बहुत ही ज्यादा चिड़चिड़ाते दिखते रहे .. हो सकता है शायद खिचड़ी पकाने से गुजरात हिमाचल चुनाव जीतना संभव ना हो .. क्योंकि खिचड़ी का असर होते ज्यादा दिखा नहीं .. मालुम क्यों ?? .. क्योंकि खिचड़ी पर विमर्श करने से हिन्दू-मुसलमान या ताजमहल या गौमाता जैसा करंट नहीं दौड़ा .. .. और मेरे हिसाब से मोदी इस बार बहुत बड़ी गलती कर गए .. खिचड़ी के बजाय यदि केसरिया लड्डू पर दांव लगाते ना तो शायद सरकार की स्थिति और बदतर होती - जो निश्चित रूप से देश के लिए बेहतर होता .. ..

वैसे भी खिचड़ी मुख्यतः दाल और चावल से बनती है - पर दाल और चावल अलग से भी पकते हैं - तो दोनों में अंतर क्या ?? - अंतर बस दाल चावल की एकता का हुआ - एक साथ पकने का हुआ .. और मोदी को किसी भी प्रकार की एकता या समरसता कहाँ रास आने वाली - क्योंकि मोदी तो केवल अलगाव से ही अपने लिए अच्छे दिन लेकर आए हैं .. और वैसे भी १० लाख के सूट-बूट पहनने वाले की राशी गरीब के भोजन खिचड़ी से मेल खा जाए - संभव ही नहीं .. और काठ की हांडी भी कहाँ बार-बार चढ़ पाती है .. ..

और इसलिए भी इस बार स्पष्ट दिखता है कि मोदी की खिचड़ी पक ही नहीं पाई .. बावजूद इसके कि भक्तों ने भी नीचे से बहुत सुलगाई !! .. ..

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

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