Sunday 22 April 2018

// एक व्यक्ति को संस्थान और संस्थान को ही एक व्यक्ति मानने की मूर्खता.. //


जब टुच्चे नेताओं के जब तब आपत्तिजनक बयानों को "व्यक्तिगत" मान कर उनसे पल्ला झाड़ लिया जाता है तो फिर ??.. मसलन अब मोदी के मंत्री संतोष गंगवार का बयान कि "१-२ रेप की घटनाओं का बतंगड़ नहीं बनाया जाना चाहिए" उनका व्यक्तिगत बयान मान कर पल्ला झाड़ा ही जाएगा.. .. ..     

तो फिर इन टुच्चे नेताओं और इनके भक्तों द्वारा मेरी और आपकी निंदा / आलोचना श्री दीपक मिश्रा जैसे न्यायाधीश के लिए व्यक्तिगत तक सीमित क्यों नहीं मान ली जाती..
पूरे माननीय उच्चतम न्यायालय को फ़ोकट क्यों लपेटे में लिया जाता है ??..

हा !! हा !! हा !!..
इसलिए ही ना क्योंकि हम इनको समझ गए थे.. और अब जाकर ये हमको समझ रहे हैं.. और अब तो मामला पारदर्शी हो चला है..

अब तो ना हमें इनका कोई लिहाज़ रहा है.. और ना हमें भी बोलने में संकोच..
और इसलिए अब ये जब तब हमारे बोलने पर छटपटा जाते हैं.. और ये स्वयं ही एक व्यक्ति को ही सहूलियत अनुसार अक्सर संस्थान जैसा मान छाती कूटने लगते हैं - और कई बार संस्थान को ही एक व्यक्ति मानने की मूर्खता कर बैठते हैं.. मसलन 'सरकार' यानि 'मोदी' मानने की मूर्खता !!..

जबकि सत्य तो यही है ना कि व्यक्तिगत रूप से श्री दीपक मिश्रा के अलावा भी उच्चतम न्यायलय में अन्य न्यायाधीश हैं जिनकी हमने कभी व्यक्तिगत रूप से निंदा नहीं करी.. और उच्चतम न्यायालय जैसे माननीय संस्थान का हमेशा मान सम्मान ही किया.. है ना ??..

इसलिए मुझे लगता है वर्तमान में श्री दीपक मिश्रा पर व्यक्तिगत महाभियोग से उठे बवाल का कारण यही है कि अब तो 'ये' भी हमें पहले से बेहतर समझने और टीपने लगे हैं.. 'ये' मतलब व्यक्तिगत रूप से नासमझ कहीं के - जिन्हें हम भक्त भी कहते आए हैं !!.. .. यानि भक्त भी हमारी सोहबत में सुधर रहे हैं !! .. हा !! हा !! हा !! .. .. 

ब्रह्म प्रकाश दुआ
'मेरे दिमाग की बातें - दिल से':- https://www.facebook.com/bpdua2016/?ref=hl

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